
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया है। लेकिन इसी के बीच कश्मीर की मस्जिदों और मुस्लिम समुदाय ने जो संदेश दिया है, वह गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल बनता जा रहा है।
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मस्जिदों से उठा अमन का पैग़ाम
हमले के बाद कई मस्जिदों में धार्मिक नेताओं और इमामों ने खुलकर आतंकवाद के खिलाफ आवाज़ बुलंद की। नमाज़ के बाद दिए गए खुत्बों (उपदेशों) में इमामों ने कहा:
“हिंसा किसी भी मज़हब या इंसानियत का हिस्सा नहीं है। इस्लाम में बेगुनाह की जान लेना पूरी इंसानियत की हत्या के बराबर है।”
सभी समुदायों से एकजुटता की अपील
धार्मिक नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि ऐसे आतंकी हमले समाज को बांटने का षड्यंत्र हैं, जिनका जवाब आपसी एकता और विश्वास से दिया जाना चाहिए। वक्ताओं ने सभी धर्मों के लोगों से अपील की:
“हमारे मज़हब का नाम लेकर जो नफरत फैलाता है, वो न इस्लाम का है और न इंसानियत का।”
गंगा-जमुनी तहजीब को मिला बल
इस हमले के बाद हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों द्वारा मिलकर विरोध दर्ज करना, घाटी में सामाजिक सौहार्द का एक नया अध्याय लिख रहा है। धार्मिक नेताओं ने कहा कि कश्मीर की आत्मा गंगा-जमुनी तहज़ीब है, जिसे आतंकवादी ताक़तें मिटाना चाहती हैं — लेकिन हम उन्हें सफल नहीं होने देंगे।
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जहां आतंकवाद डर फैलाना चाहता है, वहीं कश्मीर के मुसलमानों ने अपने रवैये से साफ कर दिया कि इस्लाम शांति का मज़हब है और कश्मीर की असली पहचान इंसानियत और भाईचारे में है। यह संदेश न सिर्फ देश के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक प्रेरणा बन रहा है।