
राहुल गांधी ने ब्राउन यूनिवर्सिटी में एक सार्वजनिक चर्चा के दौरान यह कहकर सबको चौंका दिया कि
“जब कांग्रेस से गलतियां हुईं, तब मैं था ही नहीं… मगर मैं ज़िम्मेदारी लेने को तैयार हूं।”
मतलब, बचपन की ग़लतियों का भी प्रायश्चित अब वयस्क राहुल कर रहे हैं! लेकिन बीजेपी ने इस बयान को “सिखों के ज़ख़्मों पर नमक छिड़कना” करार दे दिया।
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बीजेपी नेता तरुण चुघ ने कहा, “अगर राहुल गांधी वाकई शर्मिंदा हैं, तो जगदीश टाइटलर, कमलनाथ, सैम पित्रोदा और सज्जन कुमार पर कार्रवाई क्यों नहीं की?” उनका तंज साफ था — “माफ़ी मांगना आसान है, पर इंसाफ़ देना मुश्किल।”
इतिहास के बोझ तले झुकते राहुल या सफाई?
राहुल गांधी भले ही बोले कि वो 80s में पार्टी में नहीं थे, लेकिन सत्ता की विरासत के साथ ग़लतियों की लाठी भी तो बंधी आती है!
वैसे ये भी सवाल बनता है —क्या राहुल गांधी माफ़ी देकर वोटर्स की भावनाओं को साधना चाहते हैं, या वाकई सच्ची आत्मा की पुकार है?
“इतिहास के पाप वो धोएं, जो पैदा भी नहीं हुए थे — ये भारत की राजनीति नहीं, पुरानी सास-बहू सीरीज़ का प्लॉट लग रहा है!”
राहुल गांधी की माफ़ी और बीजेपी का तंज — दोनों मिलाकर साफ है कि राजनीति में याददाश्त भी selective होती है और शर्म भी।
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