“मंत्री जी को नहीं पहचाना तो होटल में छापा पड़वा दिया – इगो का ‘फुल प्लेट’ मामला!”

अजीत उज्जैनकर
अजीत उज्जैनकर

लोकतंत्र में जनता की पहचान सबसे अहम होती है, लेकिन मध्य प्रदेश में मामला थोड़ा उल्टा हो गया! यहां के लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा राज्यमंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल साहब रात्रि भोज पर निकले, लेकिन जब होटल वालों ने “मंत्री जी” को पहचानने में चूक कर दी — तो जनाब की ईगो थाली में उबाल आ गया!

हुआ यूं कि रविवार की रात मंत्री जी ग्वालियर के क्वालिटी रेस्टोरेंट में पहुंचे, मगर चूंकि भीड़ थी, किसी ने उन्हें सलाम नहीं ठोका। मंत्री जी को वेटिंग लिस्ट में डाल दिया गया। बस फिर क्या था — मंत्री जी को लगा, “देश बदल रहा है लेकिन पहचानने की तमीज़ नहीं आई?”

“काम बड़ा है, और समय सिर्फ डेढ़ महीना है…” — क्या पाक को मिलने वाला है ‘बड़ा तोहफा’?

फिर चालू हुआ ‘ऑपरेशन पहचान’!

अपनी पहचान जब खुद नहीं बनी, तो मंत्री जी ने विभागीय पहचान का सहारा लिया और तत्काल फूड सेफ्टी विभाग को फोन घुमा दिया।

“इनसे न सलाम मिला, न तमीज़ – अब देखता हूं कितनी हाइजीन है तुम्हारे किचन में!” – शायद मंत्री जी का अंदाज़ कुछ यूं रहा होगा।

रात 11:15 बजे तक टीम ने सैंपलिंग की मानो चिकन करी में करप्शन खोजा जा रहा हो। मंत्री जी अब संतुष्ट थे – क्योंकि भले ही ‘थाली’ में खाने का नंबर देर से आया, मगर रौब का तड़का टाइम पर लग गया।

मंत्री जी, होटल में पहचान नहीं मिली तो अगली बार शादी में बैंड बजवा देंगे क्या?

इस घटना से एक बार फिर स्पष्ट हो गया है कि हमारे कई नेताओं को सबसे बड़ी चिंता ‘जनसेवा’ की नहीं, “जनता पहचानती क्यों नहीं?” की होती है। जनता का पेट भले आधा भरा हो, मंत्री जी की पहचान फुल प्लेट होनी चाहिए!

जिस होटल में स्वाद से ज़्यादा सियासत परोसी जाए, वहां आम जनता की भूख कैसे बचे? शुक्र है मंत्री जी ने सिर्फ फूड सेफ्टी बुलवाई, अगली बार पहचान नहीं मिली तो ED या CBI को मत बुला लीजिएगा!

जब पड़ोसी बोले – “मेरी दीवार गिरे तो गिरे, तेरी बकरी तो मरे ही मरे!” — कानून क्या कहता है?

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