
पाकिस्तान ने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय मंच पर दुःख व्यक्त करने और दुविधा फैलाने की अपनी पुरानी परंपरा को बखूबी निभाया है। पहलगाम आतंकी हमले पर पाकिस्तान के बयान को पढ़कर लगता है जैसे “हम दुखी भी हैं, लेकिन इसमें हमारा कोई हाथ नहीं है, कसम से!”
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भावुकता की चाशनी में लिपटा दुःख:
पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने कहा,
“भारत के अवैध रूप से अधिकृत जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में हुए हमले से हम बेहद दुखी हैं।”
अब यह नहीं पता कि उन्हें हमले से ज़्यादा दुःख है या जम्मू-कश्मीर को बार-बार “अवैध” बताने का मौका चूक जाने का।
जादू की तरह पल्ला झाड़ना:
रक्षा मंत्री ख़्वाजा आसिफ़ ने तो पाकिस्तान की बयानबाज़ी को डिप्लोमैटिक जिमनास्टिक में बदल दिया। बोले:
“इस हमले से पाकिस्तान का कोई लेना-देना नहीं है। यह भारत का आंतरिक मामला है।”
यानि “मुलाजिम हमारा नहीं, लेकिन अफ़सोस हमारा है। गोली चलती रहे, बस नाम न आए हमारा!”
“पाकिस्तान का रवैया कुछ वैसा ही है जैसे कोई कहे – ‘पड़ोसी की दीवार गिर गई, हम दुखी हैं… लेकिन हमारी तरफ़ से कोई धक्का नहीं दिया गया!’”
पाकिस्तान का ये स्टैंड बता रहा है कि वह अब संवेदना और सफाई का कॉम्बो पैक बनाकर दुनिया को बेचने में जुटा है।
जैसे हर बार आतंकवाद की छाया में पकड़े जाने पर कहता है –
“हमें दुख है कि कुछ हुआ… लेकिन यकीन मानिए, ये हमने नहीं किया, बस हमें देखने की आदत है।”
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