
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने हाल ही में कुछ ऐसा कह दिया जिससे ISI के ऑफिस में अफरातफरी और अल-कायदा के बचे-खुचे वॉट्सऐप ग्रुप में बाढ़ आ गई। उन्होंने साफ-साफ कहा — “हम तीन दशकों तक अमेरिका और वेस्ट के लिए आतंक का गंदा काम करते रहे!”
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मतलब ये कि जो मुल्क दशकों से ‘हम पर इल्ज़ाम लगते हैं’ का राग अलापता था, अब खुलकर कह रहा है — “भाई, हम ही वो हैं जो आपके घर बम और अपने टीवी पर जश्न भेजते थे।”
पहलगाम हमले के बाद बदली जुबान?
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हालिया आतंकी हमले के बाद यह बयान आया। शायद अब पाकिस्तान के मंत्री सोचते हैं — “अब क्या छुपाएं, जब सब रिकॉर्ड पर है?” इस बार कोई डिफेंस नहीं, सिर्फ ‘डर्टी गेम’ वाली सफाई!
ख्वाजा आसिफ ने बताया कि “हमने अमेरिका के लिए आतंकियों को पाला, ट्रेन्ड किया और सोवियत अफगान युद्ध से लेकर 9/11 तक सबमें शामिल रहे।” यानी पाकिस्तान, CIA का “आतंकी ATM” बनकर बटन दबाते ही नकली जिहादी उगलता रहा।
बिलावल की सहमति: इतिहास में स्याही या खून?
बिलावल भुट्टो ने भी कहा कि “ये कोई सीक्रेट नहीं है” — अब इसका मतलब ये हुआ कि पाकिस्तान की हर किताब में “Terrorism: Made in Pakistan” का चैप्टर अनिवार्य कर दिया जाए?
उन्होंने कहा कि “अब हम इन तत्वों का समर्थन नहीं करते” — हां, बिल्कुल वैसे ही जैसे बिच्छू कहे कि अब मैं सिर्फ डांस करूंगा, डंक नहीं मारूंगा।
पाकिस्तान की ये ‘आत्मस्वीकृति’ एक तरह से UN और FATF के लिए “कन्फेशन स्टेटमेंट” है। लेकिन सवाल यह है कि जब तक यह डर्टी गेम चल रहा था, तब तक कितने हजार लोगों की जान गई, कितने घर उजड़े, और कितना वैश्विक शांति को नुकसान पहुंचा?
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ख्वाजा आसिफ का नया मंत्र: “तस्लीम करो, सज़ा नहीं होगी!”
क्या अगला बयान ये होगा? “हमने Osama को भी Airbnb पर रखा था!”
इस कबूलनामे के बाद पाकिस्तान की ‘डर्टी डायरी’ अब इतिहास में स्याही से नहीं, खून से लिखी जाएगी। पर क्या इससे कुछ बदलेगा? शायद नहीं, क्योंकि terrorism may go out of trend, but not out of Pakistan’s DNA.
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