
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम आतंकी हमले, जिसमें 26 निर्दोष पर्यटकों की जान गई, के बाद न सिर्फ सीमा पर तनाव बढ़ा है, बल्कि देश की सियासत में भी उबाल आ गया है।
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“कब लाओगे 10 सिर?” — उदित राज का तीखा हमला
कांग्रेस नेता डॉ. उदित राज ने मोदी सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा:
“एक के बदले 10 सिर लाने की बात कही थी। लाहौर तक घुसकर मारेंगे, ये सब वादे थे। अब मोदी जी को उन वादों को पूरा करना चाहिए।”
“मैं राजनाथ सिंह जी से पूछना चाहता हूं कि रोक कौन रहा है? देश की जनता उस दिन से चाह रही है, उसे पूरा कीजिए। कांग्रेस और पूरा विपक्ष आपके साथ है।”
यह बयान ऐसे समय में आया है जब देश में गुस्सा उफान पर है और सीमा पार कार्रवाई की मांग ज़ोर पकड़ रही है।
केंद्र सरकार ने लिए सख्त कदम
पहलगाम हमले के बाद भारत सरकार ने कई अहम और रणनीतिक फैसले लिए हैं:
सिंधु जल संधि को निलंबित किया गया, जो पाकिस्तान को पानी की आपूर्ति से जुड़ी एक महत्वपूर्ण संधि है।
3 मई से भारत ने पाकिस्तान से सभी प्रकार के आयात पर पाबंदी लगा दी है, जिससे द्विपक्षीय व्यापार पूरी तरह ठप हो गया है।
यह कदम पाकिस्तान पर आर्थिक दबाव बनाने के तौर पर देखे जा रहे हैं, हालांकि विपक्ष का मानना है कि सिर्फ आर्थिक कार्रवाई से बात नहीं बनेगी।
सियासी बयानबाज़ी या जन भावना?
उदित राज का बयान महज राजनीतिक प्रहार नहीं बल्कि जनता की उस भावनात्मक पीड़ा की अभिव्यक्ति है, जो बार-बार आतंकवाद के कारण चोट खाती रही है।
जहां सरकार अपनी रणनीतिक प्रतिक्रिया को ‘राज्य की नीति’ का हिस्सा बता रही है, वहीं विपक्ष लगातार पूछ रहा है:
“कब तक सहेंगे? कब आएगा वो दिन जब एक हमला अंतिम हमला होगा?”
विपक्ष की एकजुटता या दबाव की रणनीति?
उदित राज के इस बयान में एक महत्वपूर्ण बात और थी:
“कांग्रेस पार्टी और पूरा विपक्ष आपके साथ है।”
इससे यह संकेत मिलता है कि अगर केंद्र सरकार कोई बड़ा और निर्णायक कदम उठाना चाहती है, तो विपक्ष साथ देने को तैयार है — बशर्ते वह महज बयानबाज़ी तक सीमित न हो।
सवाल उठते रहेंगे, पर जवाब ज़मीन पर चाहिए
पहलगाम का हमला एक बार फिर साबित करता है कि आतंकवाद सिर्फ सीमा पार से नहीं, भरोसे के वादों के भीतर से भी चोट करता है।
अब देश इंतज़ार कर रहा है — सिर्फ एक्शन का, सिर्फ संकल्प का, और शायद, उन 10 सिरों का भी जिनका वादा किया गया था।
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