
दिल्ली हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ चल रही जांच में एक बड़ा अपडेट सामने आया है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रेस रिलीज जारी कर बताया है कि तीन सदस्यीय जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट 3 मई को पूरी कर ली और 4 मई को इसे भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस संजीव खन्ना को सौंप दिया।
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क्या है पूरा मामला?
14 मार्च 2025 को नई दिल्ली स्थित जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास के एक स्टोर रूम में अचानक आग लग गई थी।
इस आग बुझाने के बाद दमकल अधिकारियों को बड़ी मात्रा में नकदी मिलने की सूचना मिली थी, जो बाद में चर्चा और विवाद का विषय बन गई।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने एक तीन जजों की विशेष जांच कमिटी गठित की थी, जिसका उद्देश्य था:
नकदी की बरामदगी के सटीक तथ्यों की जांच करना
जस्टिस वर्मा की भूमिका या संभावित लापरवाही का मूल्यांकन
किसी भी संभावित साजिश या आरोप के पीछे की सच्चाई सामने लाना
जस्टिस वर्मा की सफाई: “ये मेरे खिलाफ साज़िश है”
जस्टिस यशवंत वर्मा ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा है कि:
“मेरे या मेरे परिवार के किसी सदस्य ने उस स्टोर रूम में नकदी नहीं रखी। यह मेरे खिलाफ एक गहरी साज़िश है। मैं जांच में पूरा सहयोग कर रहा हूँ और मुझे न्यायपालिका पर भरोसा है।”
जांच कमिटी में कौन-कौन शामिल थे?
सूत्रों के अनुसार, इस जांच कमिटी में सुप्रीम कोर्ट के तीन सीनियर जज शामिल थे।
कमिटी ने:
घटनास्थल का मुआयना किया
गवाहों और कर्मचारियों से पूछताछ की
संबंधित दस्तावेज़ों और सीसीटीवी फुटेज का परीक्षण किया
अब इस रिपोर्ट पर मुख्य न्यायाधीश की प्राथमिक प्रतिक्रिया और कार्रवाई का इंतज़ार है।
सुप्रीम कोर्ट का रुख: पारदर्शिता और जवाबदेही
सुप्रीम कोर्ट की इस प्रेस रिलीज़ से यह स्पष्ट हो गया है कि देश की सर्वोच्च न्यायपालिका अपने आंतरिक मामलों में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व के प्रति सजग है।
यह मामला न्यायपालिका की साख से जुड़ा है और इसकी संवेदनशीलता को देखते हुए आने वाले दिनों में रिपोर्ट का सार या अगला कदम सामने आ सकता है।
प्रतिष्ठा पर संकट या साज़िश का पर्दाफाश?
अब सबकी निगाहें CJI संजीव खन्ना की प्रतिक्रिया और आगे की न्यायिक कार्रवाई पर टिकी हैं। यह मामला बताता है कि भारत की न्याय व्यवस्था अब आत्मावलोकन और शुद्धिकरण के दौर से गुजर रही है — जहाँ जज भी सवालों के घेरे से अछूते नहीं।