
आज की पीढ़ी जहां ‘माकटेल’ यानी नकली शराब से असली नशे की तलाश में रहती है, वहीं अब उसे ‘माकड्रिल’ यानी नकली युद्ध से असली डर का अनुभव कराया जा रहा है। 7 मई को 54 साल बाद भारत के कई शहरों में “जंग वाला सायरन” बजेगा — और नहीं, ये कोकोमेलन का कोई साउंड इफेक्ट नहीं है, बल्कि आसमान से मौत बरसने के पूर्वाभ्यास की आधिकारिक घंटी है।
योगी सरकार ने गरीबों को दिया राशन सुरक्षा कवच, प्रयागराज बना वितरण में नंबर वन जिला
सायरन बजा तो टॉयलेट से मत भागना
इस बार सायरन का मकसद है — “डराओ लेकिन तैयारी भी कराओ!”
अगर आप PUBG में हेडफोन लगा कर ‘रेड ज़ोन’ में मज़े कर रहे हैं और तभी कोई सायरन गूंजे तो समझिए कि ये मॉकड्रिल है, लेकिन उसमें छिपा संदेश असली है।
माकड्रिल = नकली अभ्यास, लेकिन नतीजे असली हो सकते हैं।
1971 के बाद अब फिर नौबत आई है
1971 की जंग के बाद पहली बार भारत सरकार ने युद्ध जैसी स्थिति की माकड्रिल का आदेश दिया है। और वजह? 22 अप्रैल को पहलगाम में 26 निर्दोषों की नृशंस हत्या और उसके बाद भारत-पाक तनाव का बढ़ता तापमान। मतलब, इस बार नशा सिर्फ “माकटेल” का नहीं, बल्कि “माकड्रिल” का भी चढ़ने वाला है।
‘जंग वाला सायरन’: सिर्फ फिल्मों में नहीं बजता
ये कोई धोनी की वर्ल्ड कप अपील वाली साउंड इफेक्ट नहीं होती
आवाज होती है ऊंची-नीची कंपन वाली, जिससे इसे एंबुलेंस या हॉर्न से अलग पहचाना जा सके
प्रशासनिक भवनों, पुलिस मुख्यालय, भीड़भाड़ वाले इलाकों में लगाए जाते हैं
आवाज की रेंज कई किलोमीटर होती है — ताकि जो न डरे, उसे भी सिहरन हो जाए
माकड्रिल में करना क्या होता है?
सायरन बजने पर सुरक्षित जगह पर छिप जाएं
लाइट बंद करें, मोबाइल की फ्लैश लाइट भी नहीं
व्हाट्सऐप फॉरवर्ड पर भरोसा न करें, सरकारी अलर्ट पर ध्यान दें
और सबसे ज़रूरी — Instagram Reel बनाते वक्त खुद का GPS ऑफ कर लें
अब जानिए ‘नौबत’ क्या है, जो मॉकड्रिल से पहले बजती थी
‘नौबत’ शब्द पुराने राजसी दौर से आया है — जब महलों में सुबह-सुबह ढोल, नगाड़ा, शहनाई के जरिए राजा के जागने से लेकर युद्ध की तैयारी तक का ऐलान होता था। आज नौबत “मंगल ध्वनि” कम और मॉकड्रिल जैसी “भंग-ध्वनि” ज्यादा बन गई है।
कभी शहरों में सायरन श्रमिकों की शिफ्ट बताने के लिए बजता था
अब वही सायरन जनता को बताने के लिए बजता है कि “जंग की नौबत आ सकती है, पहले से डर लो”
और आज की माकटेल पीढ़ी, जो Netflix की बमबारी से ही डरी बैठी रहती है — उसके लिए यह असली सायरन असली ट्रेलर है
भारत युद्ध नहीं चाहता, पर यदि सायरन बज रहा है, तो तैयारी ज़रूरी है।
माकड्रिल कोई डराने वाला इवेंट नहीं, बल्कि एक कड़वा रिमाइंडर है कि शांति की कीमत हमेशा सतर्कता होती है। और माकटेल पीढ़ी के लिए यह सबक है — “जो चीज़ें नकली होती हैं, वो असली संकट से पहले ही चेतावनी दे जाती हैं।”