
पाकिस्तान में आतंक के अड्डों पर भारत की सर्जिकल स्ट्राइक ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद अब क़तर भी चिंतित है। लेकिन हैरानी की बात ये है कि क़तर को पहलगाम के मासूमों की चीखें नहीं, सिर्फ भारत-पाक के बीच बढ़ता “तनाव” सुनाई दे रहा है।
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क़तर का बयान: “राजनयिक हल निकालें”
क़तर विदेश मंत्रालय ने सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट किया:
“भारत और पाकिस्तान के बीच लगातार बढ़ रहे तनाव को लेकर क़तर चिंतित है और दोनों देशों से आग्रह करता है कि वे इस संकट का हल राजनयिक तरीके से खोजें।”
यह वही क़तर है जिसने तालिबान से लेकर हमास तक को बातचीत का मंच देने की पहल की है, लेकिन जब आतंक भारत में मासूमों को निगल जाए — तो बस “संयम” और “शांति” का राग!
भारत का एक्शन: ऑपरेशन सिंदूर
22 अप्रैल को पहलगाम में हुए वीभत्स आतंकी हमले, जिसमें 26 भारतीय नागरिक मारे गए थे, के जवाब में भारत ने 6-7 मई की रात ‘ऑपरेशन सिंदूर’ चलाया।
भारतीय सेना की कर्नल सोफ़िया कुरैशी ने बताया:
“हमने बहावलपुर और मुरीदके समेत नौ आतंकी शिविरों को पूरी तरह बर्बाद कर दिया। यह न्याय दिलाने का ऑपरेशन था, युद्ध का नहीं।”
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अब सवाल ये है कि आतंकी शिविरों को मार गिराना अगर तनाव बढ़ाना है, तो पहलगाम में बेकसूरों की हत्या किस श्रेणी में आती है?
“जब आतंक फैलता है, तो कुछ देश ‘मौन मुद्रा’ में चले जाते हैं, और जब उस आतंक को कुचला जाता है — तो वे ‘शांति मिशन’ बनकर जाग जाते हैं!”
क़तर की चिंता और संयम की अपील सुनने में भली लगती है, लेकिन शांति सिर्फ भारत से मांगना और आतंक पर मौन रहना — ये तटस्थता नहीं, कूटनीतिक सुविधा है। भारत ने संदेश साफ कर दिया है — बातचीत तब होगी, जब बम नहीं, इंसान बोलेंगे।
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