
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में विपक्षी सांसदों ने वोटर लिस्ट में धांधली के आरोपों को लेकर संसद भवन से निर्वाचन आयोग के दफ्तर तक एक विरोध मार्च निकाला। इस मार्च में कांग्रेस, एनसीपी, शिवसेना (यूबीटी), समाजवादी पार्टी और टीएमसी समेत कई विपक्षी दलों के नेता शामिल थे।
दिल्ली पुलिस ने क्यों की हिरासत?
नई दिल्ली के डीसीपी देवेश कुमार ने हिरासत को लेकर सफाई देते हुए कहा:
“चुनाव आयोग ने करीब 30 सांसदों को अंदर जाने की अनुमति दी थी। लेकिन संख्या बहुत अधिक हो गई थी, जिससे भीड़ नियंत्रण करना मुश्किल हो गया। इसलिए हमें उन्हें हिरासत में लेना पड़ा।”
दिल्ली पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को परिवहन भवन के पास बैरिकेडिंग करके रोक दिया और मीडिया को भी निर्वाचन भवन के पास जाने की अनुमति नहीं दी गई।
कौन-कौन शामिल थे मार्च में?
इस मार्च में कई प्रमुख विपक्षी नेताओं की मौजूदगी देखी गई, जिनमें शामिल थे:
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राहुल गांधी
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प्रियंका गांधी
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मल्लिकार्जुन खड़गे
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महुआ मोइत्रा
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डिंपल यादव
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शरद पवार
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संजय राउत
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केसी वेणुगोपाल
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रणदीप सुरजेवाला
महिला सांसदों की बड़ी भागीदारी भी इस मार्च में रही, जिससे प्रदर्शन को एक सशक्त जन-आंदोलन का रूप मिला।
राहुल गांधी का तीखा बयान
हिरासत में लिए जाने के बाद मीडिया से बातचीत करते हुए राहुल गांधी ने कहा:
“यह राजनीतिक मुद्दा नहीं है। यह One Man One Vote की लड़ाई है। हमें साफ़ वोटर लिस्ट चाहिए। ये संविधान को बचाने की लड़ाई है, और हम पीछे नहीं हटेंगे।”
उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग ने विपक्ष की मांगों को नजरअंदाज़ किया और बीजेपी के साथ मिलकर काम कर रहा है।
बीजेपी का पलटवार
वहीं बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने विपक्ष के इस विरोध को “राजनीतिक ड्रामा” करार देते हुए कहा:
“कांग्रेस झूठ का पहाड़ खड़ा कर रही है। कभी EVM, कभी वोटर लिस्ट, हर बार कुछ नया बहाना। ये सब जनता को गुमराह करने की रणनीति है।”
उन्होंने राहुल गांधी को “संविधान विरोधी गतिविधियों के सरगना” तक कह दिया।
चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप
पिछले हफ्ते राहुल गांधी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि महाराष्ट्र और हरियाणा की वोटर लिस्ट में बड़े स्तर पर हेराफेरी की गई है। उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग ने मशीन-रीडेबल वोटर लिस्ट देने से इनकार कर, बीजेपी को लाभ पहुंचाने की कोशिश की।
चुनाव आयोग ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि राहुल गांधी को शिकायत लिखित रूप में दर्ज करानी चाहिए। आयोग ने इन आरोपों को गुमराह करने वाला बताया।
क्या यह लोकतंत्र की सच्ची तस्वीर है?
इस घटनाक्रम ने एक बार फिर सवाल खड़ा कर दिया है — क्या विपक्ष को आवाज़ उठाने का संवैधानिक हक़ मिल पा रहा है? क्या यह सिर्फ वोटर लिस्ट का मामला है या इसके पीछे लोकतंत्र की गहराई तक जुड़ी कोई बड़ी चुनौती है?