
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने केंद्र सरकार से जाति जनगणना को लेकर स्पष्ट समयसीमा की मांग की है। उन्होंने कहा कि आख़िरी बार जाति आधारित जनगणना 1931 में हुई थी और उसके बाद से अब तक किसी भी सरकार ने इसे दोहराने की हिम्मत नहीं दिखाई।
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हमें बताइए जाति सर्वे कब शुरू होगा, कब खत्म और कब लागू?
एक सार्वजनिक बयान में ओवैसी ने कहा:
“हम बीजेपी और एनडीए से सिर्फ़ इतना पूछना चाहते हैं कि जाति जनगणना कब शुरू होगी, कब खत्म होगी और कब लागू होगी? क्या यह 2029 के आम चुनाव से पहले पूरी होगी या नहीं?”
उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी 2021 से ही इसकी मांग कर रही है और यह सिर्फ़ एक आंकड़ों की कवायद नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय की नींव है।
पसमांदा मुसलमानों के लिए अलग जाति सर्वे की मांग
ओवैसी ने खासतौर पर पसमांदा मुसलमानों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति जानने के लिए अलग से जातिगत सर्वेक्षण की वकालत की। उन्होंने कहा:
“अगर पसमांदा मुसलमानों की वास्तविक स्थिति सामने आ जाए, तो यह साफ़ हो जाएगा कि ग़ैर-पसमांदा मुस्लिम समुदाय में भी असमानता कितनी गहरी है। यह ज़रूरी है ताकि योजनाओं का लाभ सही लोगों तक पहुंचे।”
‘कौन पीछे है, कौन आगे – यह जानना ज़रूरी’
ओवैसी ने यह भी जोड़ा कि जातिगत जनगणना से यह पता चल पाएगा कि किस जाति को वास्तव में कितना लाभ मिला और कौन सी जातियां अब भी पिछड़ेपन से जूझ रही हैं।
उनके मुताबिक, इस डाटा के बिना कोई भी नीति वास्तविक बदलाव नहीं ला सकती।
जाति जनगणना: सिर्फ राजनीतिक मुद्दा या सामाजिक ज़रूरत?
ओवैसी का यह बयान ऐसे समय में आया है जब देश के कई राज्यों—बिहार, ओडिशा, तेलंगाना—ने राज्य स्तरीय जाति सर्वे कराना शुरू कर दिया है, लेकिन केंद्रीय स्तर पर कोई ठोस कार्य योजना नहीं बनी है।
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि लोकसभा चुनाव 2029 से पहले जातिगत जनगणना एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन सकता है।
ओवैसी की मांग में गूंजता है सामाजिक प्रतिनिधित्व का सवाल
असदुद्दीन ओवैसी का बयान जाति आधारित जनगणना की राजनीतिक और सामाजिक जरूरत दोनों को उजागर करता है। अब यह देखना होगा कि केंद्र सरकार इस पर कब तक कोई स्पष्ट रुख अपनाती है।
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