जब झूठा FIR पड़ जाए सिर पर – तो क्या आप भागें या कानून से खेलें शतरंज?

अमित तिवारी, लीगल  एक्सपर्ट
अमित तिवारी, लीगल एक्सपर्ट

एक ज़माना था जब लोग किसी को बदनाम करने के लिए अफवाह फैलाते थे। अब जमाना आ गया है झूठे FIR का! जी हां, “अगर दुश्मन परेशान करे, तो FIR करवा दे” — यही फॉर्मूला चल रहा है आजकल। लेकिन डरिए मत! हम आपके लिए लाए हैं लीगल-टॉनिक एडवोकेट अमित तिवारी की जुबानी, जो बताते हैं — “कैसे झूठी FIR की आग में घी डालने की जगह, पानी फेंका जाए… वो भी कानून के नल से।”

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FIR हो जाए तो करें क्या?

“सबसे पहले घबराने की जरूरत नहीं है। भारतीय कानून निर्दोष व्यक्ति को भी पर्याप्त सुरक्षा देता है। FIR होने का मतलब यह नहीं कि आप दोषी हैं। मोबाइल उठाइए, गूगल मत कीजिए ‘अब क्या होगा’, बल्कि वकील को कॉल कीजिए।”

लीगल हथियार – चालें शतरंज की, नियम IPC के:

FIR की कॉपी उठाइए –
जैसे रिपोर्ट कार्ड देखकर पापा डरते हैं, वैसे ही आप FIR पढ़िए… और फिर अगली चाल सोचिए।

High Court में ‘ऊपरी इलाज’ –
झूठ है? फर्जी है? सबूत है? तो FIR रद्द कराने का क़ानूनी आइटम नंबर चलाइए।

अग्रिम जमानत – Arrest से पहले ही ‘नमस्ते भारत’ कहिए –
गिरफ्तारी का डर? तो अग्रिम जमानत का चमत्कारी उपयोग कीजिए।

बदले की वैदिक शैली –
FIR करने वाले पर ही FIR ठोंक दीजिए। गेम बराबर।

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सुप्रीम कोर्ट क्या कहता है इस ड्रामे पर?

सुप्रीम कोर्ट ने ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2013) और राजेश शर्मा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2017) जैसे मामलों में स्पष्ट किया है कि पुलिस को FIR दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच करनी चाहिए। झूठे मुकदमों में गिरफ्तारी तुरंत न की जाए।

“अगर आप निर्दोष हैं, तो हिम्मत रखिए। कानून से डरो मत, उसका इस्तेमाल करो। FIR डराने का हथियार नहीं, न्याय का जरिया है।” 

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