प्रयागराज : अब तक आपने सास-बहू की लड़ाइयों को सिर्फ टीवी सीरियल्स में देखा होगा — कभी सास ‘लड्डू’ से सच्चाई उगलवाती है, तो कभी बहू ‘पर्स’ में माइक छुपा देती है।
लेकिन अब यह ड्रामा कोर्ट में भी आ गया है, और बिल्कुल लीगल नोटिस के साथ! हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ऐसा फैसला सुनाया है, जिससे बहुएं सोच में पड़ गई हैं — “अब मम्मीजी भी केस कर सकती हैं? ये तो गेम ही पलट गया!
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क्या कहा है कोर्ट ने?
हाई कोर्ट ने कहा है कि:
“अगर सास को बहू या उसके परिवार से मानसिक या शारीरिक प्रताड़ना मिलती है, तो वह घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 की धारा 12 के तहत केस कर सकती है।”
इसके बाद अब घरेलू हिंसा का मामला वन वे ट्रैफिक नहीं रहा। अब दोनों तरफ से चालान कट सकते हैं।
मामला क्या था?
एक केस में सास ने इल्जाम लगाया कि बहू अपने पति (यानी सास का बेटा) को उसके माता-पिता से अलग रहने का दबाव डाल रही थी। बहू ने सास के साथ दुर्व्यवहार किया और झूठे केस में फंसाने की धमकी दी। लखनऊ की निचली अदालत ने समन जारी कर दिया। बहू ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, पर कोर्ट ने कहा — “सास भी पीड़िता हो सकती है।”
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घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की धारा 12 कहती है:
“कोई भी महिला, जो घरेलू संबंध में रहती है और पीड़ित है, वह कोर्ट में शिकायत दर्ज कर सकती है।”
इसमें न उम्र की सीमा है, न रोल की।
सास हो या बहू — अगर मानसिक, आर्थिक या शारीरिक हिंसा हो रही है, तो आप शिकायत कर सकती हैं।
सोशल मीडिया ने कहा – “सासू माँ लेजेंड हैं”
जैसे ही ये खबर आई, ट्विटर-एक्स-इंस्टा पर लोगों की क्रिएटिविटी ने छलांग लगा दी:
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@LegalLadki: “अब बहू को भी वकील की जरूरत है, सिर्फ हल्दी दूध से काम नहीं चलेगा!”
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@SaasNo1: “अब मैं भी #DomesticViolence की warrior हूं, सिर्फ किचन की नहीं!”
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@JointFamilyJunction: “अब घर में बहस होगी तो बहू बोलेगी – ‘आप मुझे कोर्ट में मिलें!’ ”
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फैसले का मतलब क्या है?
महिला का मतलब सिर्फ बहू नहीं:
अब हर महिला, चाहे उसकी उम्र या भूमिका कुछ भी हो, कानून की नजर में बराबर है।
घर में अब ‘पक्षपात’ नहीं:
घरेलू हिंसा सिर्फ पति-पत्नी तक सीमित नहीं — अब पूरा परिवार इसके दायरे में है।
कानून अब सीरियल से तेज़ है:
सास-बहू के झगड़े अब सिर्फ “तुमने मेरी साड़ी क्यों जलाई?” तक नहीं — “तुमने मेरी गरिमा क्यों जलाई?” तक पहुंच गए हैं।
अब रिश्ते ‘संविधान सम्मत’ होंगे!
इलाहाबाद हाई कोर्ट का ये फैसला एक बात बहुत साफ करता है —
रिश्तों में अगर हिंसा है, तो कानून मौन नहीं रहेगा, चाहे वो सास हो, बहू हो या ससुराल का कोई और सदस्य।
अब हर महिला को अपनी बात कहने का कानूनी हक है — और बहुओं को भी ये समझने का समय है कि सासू माँ सिर्फ आचार बनाना नहीं जानतीं, धारा 12 भी जानती हैं।
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