
वीर सावरकर पर की गई कथित विवादित टिप्पणी को लेकर चल रही आपराधिक मानहानि की कार्यवाही पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अस्थायी रोक (Stay) लगा दी है। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के लिए यह एक बड़ी राहत मानी जा रही है, जिन्हें अकोला की अदालत ने समन जारी किया था।
पाकिस्तान पर राजनीतिक दबाव कैसे और कितना डाला जा सकता है? जानिए प्रभावी रणनीति
मामला क्या है?
राहुल गांधी ने 2022 की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान महाराष्ट्र के अकोला में आयोजित एक रैली में वीर सावरकर को लेकर टिप्पणी की थी। इस बयान को लेकर बीजेपी और आरएसएस समर्थकों ने कड़ी आपत्ति जताई थी। इसके बाद अकोला की निचली अदालत में आपराधिक मानहानि (Criminal Defamation) की याचिका दायर हुई, जिस पर कोर्ट ने राहुल को समन जारी किया था। जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस समन आदेश को रद्द करने से इनकार कर दिया, तो राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में क्या हुआ?
इस मामले की सुनवाई जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने की। सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कानूनी बिंदुओं पर राहुल के वकील की दलीलों को सही माना और कार्यवाही पर अस्थायी रोक (Stay) लगा दी। लेकिन इसके साथ-साथ कोर्ट ने राहुल गांधी की राजनीतिक ज़िम्मेदारी और इतिहास की समझ पर भी सवाल खड़े किए।
जज ने क्या कहा?
जस्टिस दीपांकर दत्ता ने वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी से कहा:
“क्या आपके क्लाइंट को पता है कि महात्मा गांधी ने भी वायसराय को पत्र में ‘आपका वफ़ादार सेवक’ लिखा था?”
उन्होंने आगे कहा:
“उन्हें स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में गैर-ज़िम्मेदाराना बयान नहीं देना चाहिए… जब आपको भारत के इतिहास या भूगोल की जानकारी ही नहीं है, तो आप ऐसे बयानों से लोगों की भावनाओं को क्यों आहत करते हैं?”
“अकोला में जाकर सावरकर के ख़िलाफ़ बयान देना, जहां उन्हें पूजा जाता है — क्या ये जानबूझकर विवाद पैदा करना नहीं है?”
कानूनी पहलू बनाम सामाजिक भावनाएं
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कानूनी आधार पर स्टे दिया, लेकिन साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि राजनीतिक नेताओं को अपने शब्दों की गंभीरता समझनी चाहिए, खासकर जब वो देश के इतिहास और स्वतंत्रता सेनानियों पर बात कर रहे हों।
कांग्रेस की प्रतिक्रिया
कांग्रेस की ओर से कहा गया है कि राहुल गांधी ने सावरकर की विचारधारा की आलोचना की थी, न कि व्यक्तिगत अपमान किया। पार्टी का कहना है कि “इतिहास की आलोचनात्मक व्याख्या लोकतंत्र का हिस्सा है और विपक्ष के नेता को यह हक है।”
“देश पहले, भावनाएं बाद में”: अरशद नदीम विवाद पर नीरज चोपड़ा ने तोड़ी चुप्पी
इस मामले ने एक बार फिर इतिहास, राजनीति और अभिव्यक्ति की आज़ादी के बीच की जटिलता को उजागर किया है। जहां सुप्रीम कोर्ट ने कानूनी प्रक्रिया में दखल देते हुए कार्यवाही पर रोक लगाई, वहीं राहुल गांधी को यह भी याद दिलाया कि राजनीतिक अभिव्यक्ति की आज़ादी ज़िम्मेदारी के साथ आती है।