
पाकिस्तान बार-बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद, सीमा उल्लंघन और मानवाधिकार हनन जैसे मामलों में घिरता रहा है। लेकिन राजनीतिक दबाव वो हथियार है जो बिना युद्ध के भी असरदार होता है। सवाल यह है – भारत और वैश्विक शक्तियाँ मिलकर पाकिस्तान पर राजनीतिक दबाव कैसे बना सकती हैं, और इसका प्रभाव कितना गहरा हो सकता है?
कराची पोर्ट ब्लॉकेज: भारत की रणनीति, पाकिस्तान की आर्थिक तबाही?
डिप्लोमैटिक आइसोलेशन
भारत और उसके सहयोगी देश पाकिस्तान के खिलाफ साझा बयान, यूएन प्रस्ताव, और द्विपक्षीय वार्ताओं से किनारा कर सकते हैं। SAARC समिट 2016 में भारत ने बहिष्कार किया और बाकी देशों ने साथ दिया। इससे पाकिस्तान की कूटनीतिक साख पर असर पड़ा।
FATF के ज़रिए दबाव
Financial Action Task Force (FATF) में पाकिस्तान ग्रे लिस्ट में रह चुका है। भारत और पश्चिमी देश उसे ब्लैकलिस्ट कराने की कोशिश कर सकते हैं।
विदेशी निवेश रुक जाता है। अंतरराष्ट्रीय लोन महंगे या नामंज़ूर हो जाते हैं। डॉलर की किल्लत और मुद्रा संकट बढ़ता है।
संयुक्त राष्ट्र में मुद्दे उठाना
भारत लगातार कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद, गिलगित-बाल्टिस्तान में मानवाधिकार उल्लंघन, और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के मुद्दे उठाकर पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्मिंदा कर सकता है। यह पाकिस्तान की वैश्विक छवि को आतंकी समर्थक देश के रूप में पुख्ता करता है।
रणनीतिक संधियों के ज़रिए दबाव
भारत ईरान, अफगानिस्तान, सऊदी अरब, यूएई और अमेरिका के साथ मजबूत कूटनीतिक साझेदारी बनाकर पाकिस्तान को रणनीतिक तौर पर अकेला कर सकता है। इससे पाकिस्तान पर चीन की निर्भरता बढ़ेगी, जिससे उसकी नीतिगत आज़ादी सीमित हो जाएगी।
पाकिस्तान पर दबाव का प्रभाव कितना होगा?
क्षेत्र | संभावित असर |
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अर्थव्यवस्था | विदेशी निवेश घटेगा, IMF लोन पर शर्तें बढ़ेंगी |
राजनीति | आंतरिक अस्थिरता, सरकार पर दबाव |
सेना | बजट में कटौती, सैन्य संचालन पर असर |
वैश्विक छवि | आतंकवाद समर्थक राष्ट्र की पहचान और मज़बू |
भारत को सिर्फ दबाव ही नहीं बनाना है, बल्कि संतुलित कूटनीति भी रखनी होगी ताकि विश्व समुदाय भारत को एक जिम्मेदार और शांतिप्रिय शक्ति के रूप में देखे। इसका फायदा भारत को UNSC, G20 जैसे मंचों पर मिलेगा।