
“भारत में दो चीजें कभी स्थिर नहीं रहतीं – नेताओं के बयान और पेट्रोल की कीमत!”
जहां एक ओर आम जनता सुबह उठकर देखती है कि डॉलर गिरा या चढ़ा, वहीं पेट्रोलियम सेक्टर चुपचाप ‘भावनात्मक ब्लैकमेल’ कर रहा है – कभी क्रूड गिरा, कभी टेंशन बढ़ा। सवाल ये है – क्या ये निवेश का सही समय है या फिर तेल में हाथ डालने का मतलब है सीधे फ्राइपैन में कूद जाना?
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अभी तेल में चल क्या रहा है?
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दुनिया भर में कच्चे तेल के दाम रिलेशनशिप स्टेटस की तरह बदल रहे हैं – कभी गिरते हैं, कभी चढ़ते हैं, और बीच-बीच में “It’s complicated” मोड में आ जाते हैं।
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अमेरिका और चीन की तकरार, ओपेक की मनमानी कटौती और रूस का ‘तू चल मैं आया’ एटीट्यूड – सब मिलकर तेल को हॉलीवुड ड्रामा बना चुके हैं।
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भारत में चुनावी माहौल होने के कारण सरकार फिलहाल तेल के दामों को “कृत्रिम वेंटीलेटर” पर रखे हुए है। लेकिन 5 जून के बाद “भाव बढ़ेंगे, भाव बढ़ेंगे!”।
क्या ये निवेश का सही समय है?
अगर आप:
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थोड़ा रिस्क उठा सकते हैं,
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न्यूज देख-देखकर मन ना खराब करते हों,
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और “तेल का भाव देख लिया करो” वाले अंकल को हर सुबह टशन देना चाहते हैं,
तो हां, कमोडिटी ट्रेडिंग या तेल से जुड़ी कंपनियों में निवेश एक अच्छा मौका हो सकता है। लेकिन ध्यान रहे: तेल की तरह निवेश भी फिसल सकता है।
प्रो टिप्स (तेल लगाकर नहीं, सोच समझकर):
क्रूड ऑयल में ट्रेडिंग करने से पहले OPEC की मीटिंग की तारीखें जान लें – ये लोग कभी भी फीलिंग्स बदल सकते हैं।
ETF या Oil कंपनियों के शेयर में निवेश करना ज्यादा सुरक्षित है बजाय सीधे क्रूड ट्रेडिंग के।
पेट्रोल पंप खोलने का विचार तब तक न करें जब तक “दाम स्थिर” शब्द न्यूज़ में न आ जाए।
तेल के बाजार में अभी हलचल है – कुछ लोगों के लिए यह सुनहरा मौका है, तो कुछ के लिए तेल में तला हुआ सपना।
इसलिए, निवेश करिए लेकिन पहले खुद से पूछिए – “तेल है कि छलावा?”
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