DGP साहेब कहिन ! जनता लाइन में हो न हो, विधायक-मंत्री को सैल्यूट मिलना चाहिए

आशीष शर्मा (ऋषि भारद्वाज)
आशीष शर्मा (ऋषि)

अब थाना हो या तंबू, सड़क हो या समारोह – माननीय आएं तो पुलिसवाले सिर्फ आंख नहीं, हाथ भी उठाएं – सैल्यूट में! मध्य प्रदेश पुलिस महानिदेशक कैलाश मकवाना ने एक नया लोकतांत्रिक फरमान जारी किया है:
“हर सांसद-विधायक को सैल्यूट ठोका जाए, वरना शिष्टाचार की हत्या मानी जाएगी!”

24 अप्रैल को जारी इस सर्कुलर में पुराने 8 आदेशों की दुहाई दी गई है – यानी पुलिसवालों को समय-समय पर स्मरण कराया जाता रहा है कि लोकतंत्र में जनता के सेवकों को देखकर सीधे खड़े होना और सलामी देना संवैधानिक मर्यादा का हिस्सा है, शायद संविधान की अनुछेद 370A के तहत (जो कभी लिखा ही नहीं गया)।

सैल्यूट नहीं, तो सम्मान नहीं!

पुलिसकर्मियों को अब साफ निर्देश है – माननीय थाने आएं तो VIP लाउंज वाली तवज्जो दें, उनके आने-जाने पर “सैल्यूट” अनिवार्य है। उनसे मिलने में देरी, मुंह बनाना या सरकारी व्यस्तता दिखाना अब शिष्टाचारहीनता की श्रेणी में आएगा।

सैल्यूट-गाथा के पीछे की ‘महान’ कहानी:

दरअसल ये आदेश कुछ माननीयों की आहत भावनाओं का नतीजा है। पिछोर के विधायक प्रीतम लोधी थाने का घेराव कर बैठे थे क्योंकि उनकी बात को VIP रजिस्टर में फौरन दर्ज नहीं किया गया। मऊगंज के विधायक प्रदीप पटेल तो खुद गिरफ्तारी देने थाने पहुंच गए। बोले – “अब मेरी ही बारी थी, तो मैंने खुद को अरेस्ट करने आ गया!”

इन घटनाओं के बाद पुलिस मुख्यालय में लोकतंत्र की “संवेदनशीलता” का भूकंप दर्ज किया गया और सैल्यूट की अनिवार्यता पर मुहर लग गई

अब आगे क्या?

हो सकता है अगला आदेश ये हो, “माननीयों के सामने खड़े होने की न्यूनतम दूरी 5 फीट हो, और मुस्कान 2 इंच की।”, या फिर – “सैल्यूट के साथ एक धन्यवाद और दो बार ‘जी मान्यवर’ बोलना अनिवार्य हो!”

क्योंकि लोकतंत्र में जनता का सेवक ही असली राजा होता है, बशर्ते उस पर सफेद नेमप्लेट हो और साथ में ज़ेड कैटेगरी की फीलिंग।

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पुलिस सुधार की बातें पुरानी हो गईं, अब ‘पॉलिटिकल शिष्टाचार’ सुधार का युग है। जनता लाइन में हो न हो, विधायक साहब को सैल्यूट मिलना चाहिए। क्योंकि यही लोकतंत्र है – सैल्यूट और साइलेंस, दोनों जरूरी हैं।

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