
देश में इन दिनों बारिश कम और संविधान की प्रस्तावना पर बहस ज़्यादा हो रही है। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बयान दे डाला कि, धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्द भारतीय संस्कृति के मूल में नहीं हैं। इन्हें हटाया जाना चाहिए। यानि अब संविधान भी ‘रीडिज़ाइन मोड’ में?
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आपातकाल की वापसी… बयानबाज़ी में
शिवराज सिंह का कहना है कि ये दोनों शब्द तो आपातकाल (1976) में जोड़े गए थे, इसलिए “थोड़े एक्स्ट्रा लगते हैं”।
सर्वधर्म समभाव ही असली भारतीय विचार है। धर्मनिरपेक्षता तो विदेशी शब्दों की तरह लगती है।
लगता है अब संविधान की प्रस्तावना भी सीवी (CV) बन चुकी है — ज़्यादा शब्द भर दिए हों तो डिलीट कर दो!
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शिवराज यहीं नहीं रुके। उन्होंने समाजवाद पर भी कहा, जब सबको अपने जैसा मानना ही भारत का विचार है, तो फिर समाजवाद क्यों?
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ये बयान क्यों आया? पीछे से आए थे होसबाले
दरअसल, आरएसएस सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कुछ दिन पहले कहा था कि “धर्मनिरपेक्ष” और “समाजवादी” शब्द संविधान की मूल आत्मा नहीं हैं।
अब शिवराज सिंह ने वही बात मंत्रिमंडलीय भाषा में दोहरा दी है।
प्रस्तावना में ‘कट-पेस्ट’ या पहचान की बहस?
समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता को लेकर बहस कोई नई नहीं है, लेकिन जब इसे केंद्रीय मंत्री उठाएं, तो संकेत साफ़ होता है — राजनीति अब सीधे प्रस्तावना तक पहुंच चुकी है।
अब देखना ये है, क्या वाकई संविधान से शब्द कटेंगे या ये सिर्फ चुनावी मौसम का बवंडर है?
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