
कभी आपने गौर किया है? जब कोई आंखें झुकाकर कहे, “हाँ, सब ठीक”, तो उनकी आवाज़ के पीछे एक तूफ़ान चुपचाप सीट बेल्ट बांध कर बैठा होता है। तो अगली बार जब कोई ये बोले…
Mat Lo At Face Value. उस “ठीक” के पीछे जो “ठक-ठक” चल रही होती है न, वो दिल की पुकार होती है।
कैसे निकालें वो छुपा हुआ emotion? Here’s the Tandoori Tip-List
1. “चल चाय पिलाता हूं” — चाय नहीं, चुप्पी तोड़ने की चाबी है!
Tea = Trust + Time
बिना सवाल पूछे बैठ जाइए उनके साथ, एक कप चाय के साथ। Silence is awkward, लेकिन वहीं से जुड़ाव शुरू होता है।
2. “तेरी शक्ल बता रही है तू झूठ बोल रहा है” – थोड़ा मज़ाक, बहुत असर
Funny tone में कहें, “तू इतना ठीक कैसे हो गया बे? तू तो कल भी drama कर रहा था!”
3. “Voice Notes भेज दे, लिख मत” – टेक्स्ट में नहीं, आवाज़ में दर्द ज़्यादा बोलता है
Sometimes typing feels too much. Let them vent vocally, बिना रोके, बिना जज किए।
4. “चल एक गेम खेलते हैं – सच या सच!”
Spin the bottle मत निकालिए, बस कहिए – “बोल ना क्या चल रहा है, मैं झेल लूंगा।”
5. “मैं यहां हूं, जब तू बोलेगा तब नहीं, जब तू चुप रहेगा तब भी”
Emotions express नहीं होते जब इंसान ready हो, वो निकलते हैं जब आप safe लगते हैं।
Emotions का लॉक खोलना है? ये मत करें:
“चिंता मत कर यार, सब ठीक हो जाएगा”
— भाई! यही तो प्रॉब्लम है कि सब ठीक नहीं है!
“तू तो strong है, रो क्यों रहा है?”
— बिल्डिंग भी स्ट्रॉन्ग होती है, फिर भी भूकंप में हिल जाती है।
“चल भूल जा, मूवी देख”
— मूवी distraction देती है, healing नहीं।
ग़म का निकल जाना ही बेहतर है, वरना अंदर ही अंदर इंसान गल जाता है
जब कोई कहता है “हाँ, सब ठीक“, तो सुनने की कलाकारी चाहिए, टाइम चाहिए, इरादा चाहिए।
उसके ग़म को हल्के में मत लीजिए, बल्कि उसे वो जगह दीजिए जहां दिल की बातें सिर नहीं, आंखें कह सकें।
क्योंकि बातों से निकले ग़म ही ज़ख्म को भरते हैं।