
सीज़फायर की खबर पर गोरखपुर में हलचल है। भारत-पाक तनाव के बीच हुई यह घोषणा शांति की दिशा में कदम ज़रूर है, लेकिन स्थानीय लोगों की राय में इसे पाकिस्तान की रणनीतिक मजबूरी के रूप में देखा जा रहा है, न कि सच्चे इरादे के तौर पर।
बागी बलिया बोलेला – पाकिस्तान के भरोसा कइसे? भारत तैयार रहे के चाहीं!
क्या कहते हैं गोरखपुरवासी?
अब्दुल राशिद :
“शांति सबसे बेहतर विकल्प है लेकिन पाकिस्तान का इतिहास भरोसे लायक नहीं। सीज़फायर तब तक बेमानी है जब तक आतंकवाद की फैक्ट्री बंद न हो।”
ताहिरा परवीन :
“मुस्लिम होने के नाते हम अमन चाहते हैं, लेकिन जब बात भारत की सुरक्षा की हो, तब कोई समझौता नहीं होना चाहिए।”
राजेश मिश्रा :
“ये सीज़फायर नहीं, पाकिस्तान की हार का इशारा है। भारत की नीति और सेना की मजबूती ने उन्हें घुटने टेकने पर मजबूर किया है।”
नूर मोहम्मद :
“हम पाकिस्तानी नहीं, हिंदुस्तानी मुसलमान हैं – भारत की रक्षा हमारी भी जिम्मेदारी है। पाकिस्तान पर भरोसा करना खुद को धोखा देना है।”
सुनीता त्रिपाठी :
“जैसे हमारे जवान बॉर्डर पर डटे हैं, वैसे ही हमें भी हर खबर को सजगता से देखना चाहिए। सीज़फायर सिर्फ कागज़ पर है, भरोसा नहीं बन पाया है।”
गोरखपुर का मूड: “शांति तब तक ही जब तक भारत तैयार है”
गोरखपुर में युवाओं, बुजुर्गों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों – सबका एक सुर में यही संदेश है कि पाकिस्तान के झुकने को कमजोरी नहीं, भारत की दृढ़ इच्छाशक्ति का परिणाम समझा जाए। लोगों को भरोसा है कि अगर फिर कोई हमले की कोशिश हुई, तो भारत की प्रतिक्रिया पहले से कहीं ज़्यादा कठोर होगी।
गोरखपुर की ज़मीन से निकली राय भारत की जनभावना को दर्शाती है –
“शांति की पहल अच्छी है, लेकिन आँख मूंदना मूर्खता होगी।”
“भारत पर आंख उठाने की कीमत अब पाकिस्तान जान चुका है – सीज़फायर उसी का सबूत है।”
पटना बोलेला – शांति ठीक बा, बाकिर जब ले आतंकवाद रही, तब ले भारत के जवाब भी ज़रूरी बा