आज़म के जलवे से कांपते थे नेता, अब ऐसा क्या हुआ कि मिलने से कतराते हैं

कभी समाजवादी पार्टी की बैठकों में अगर कोई सबसे ऊँचे स्वर में बोल सकता था, तो वो थे मोहतरम आज़म खान साहब। मुलायम सिंह के दौर में उनका रुतबा ऐसा था कि रामगोपाल हों या शिवपाल, सबकी जुबान पर ताला लग जाता था। “गाय पहले, पार्टी बाद में”: राजा ने छोड़ी बीजेपी, गाय ने नहीं छोड़ा उनका साथ अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे, पर चाचा को आँख दिखाने की हिम्मत न उन्होंने की, न उनके बगल में बैठे किसी विधायक ने। चचा एक बार पार्टी छोड़ के गए, पार्टी की अधिकृत…

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सियासत में ‘भाईचारा’ सिर्फ तब तक… जब तक कुर्सी चमक रही हो!

सियासत में दोस्ती वैसी ही होती है जैसे मोबाइल की बैटरी — जब तक फुल चार्ज है, सब कॉल कर रहे हैं। पर जैसे ही सत्ता की बैटरी डाउन हुई, तो वही लोग फोन उठाना भूल जाते हैं। नेताओं के साथ की कहानी भी कुछ ऐसी ही है — “कुर्सी हो तो बंदगी, वरना बंद दरवाजे”। सिंदूर कप: सेना-11 ने मारी बाज़ी, मंच पर MLC-ADCP भिड़े कुर्सी गई, तो पहचान भी गई कभी मंच पर बगल में खड़े होकर फोटो खिंचवाने वाले लोग, अब व्हाट्सएप पर ब्लू टिक भी नहीं दे…

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