
मध्य प्रदेश की गर्म दोपहर में राहुल गांधी ने ठंडी-सुनामी चला दी। भीड़ को देखते हुए उन्होंने माइक सम्हाला और झट से जड़ दिया – “ट्रंप ने फोन किया, बोला ‘नरेंदर, सरेंडर’, और मोदी जी ने झुका दिया सिर!”
अब भले ही यह वाक्य ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में नहीं जाए, लेकिन बीजेपी की रक्तचाप मशीन जरूर फुल टेंशन में आ गई।
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थरूर बोले:
वॉशिंगटन डीसी में प्रेस से मुखातिब कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने बहुत ही थरूरी भाषा में समझाया – “हम अमेरिका से रणनीतिक दोस्ती रखते हैं, लेकिन भारत-पाक रिश्तों में middle-man की घुसपैठ कभी नहीं होने देंगे। पाकिस्तान अगर आतंक छोड़ दे, तभी बात संभव है – वो भी बिना किसी ‘व्हाइट हाउस वाया’ प्रॉक्सी के।”
बीजेपी: सेना का अपमान हुआ है!
जेपी नड्डा को लगा जैसे राहुल गांधी ने बयान नहीं, ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया हो। बोले – “ये हमारे जवानों के शौर्य का अपमान है! सरेंडर कहकर राहुल ने सेना की पीठ में छुरा घोंपा है।”
बीजेपी ने इस बयान को ‘रेड अलर्ट’ की तरह ट्रीट किया, और कांग्रेस को देशद्रोह की टुकड़ी बताने का मौका न छोड़ा।
राजनीति का कुटिल शतरंज
यह बयान ऐसे समय में आया है जब विपक्ष विदेशी नीति, बॉर्डर पॉलिसी और मोदी सरकार की “बोलती बंद” डिप्लोमेसी को लेकर सवाल उठा रहा है।
थरूर का ‘नो मिडलमैन’ बयान जहां कांग्रेस की सॉबर ब्रांडिंग का हिस्सा लगा, वहीं राहुल गांधी का ‘सरेंडर’ पंच थोड़ा ज़्यादा मसालेदार हो गया।
डिप्लोमेसी में डायलॉग ज़रूरी है, ड्रामा नहीं!
जहां एक ओर भारत को अपनी संप्रभुता पर गर्व है, वहीं नेता अक्सर शब्दों से लापरवाह हो जाते हैं। मोदी सरकार की विदेश नीति पर सवाल उठाना विपक्ष का हक़ है, लेकिन ‘सरेंडर’ जैसे शब्द भारतीय राजनीति की भाषा को थोड़ा और गहरा कर देते हैं – कभी कड़वा, कभी चटपटा।
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