वक्फ कानून पर PM मोदी पर ओवैसी का पलटवार: ‘पंक्चर’ से लेकर ‘चाय’ तक चली बहस

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को हरियाणा में एक रैली के दौरान वक्फ बोर्ड की संपत्तियों को लेकर बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा:

“देश में वक्फ बोर्ड के पास लाखों हेक्टेयर जमीन है, जिसका ईमानदारी से इस्तेमाल होता तो मुस्लिम युवाओं को ‘पंक्चर’ नहीं बनाना पड़ता।”

उनका कहना था कि इन ज़मीनों का इस्तेमाल गरीब मुसलमानों, महिलाओं और बच्चों के कल्याण में किया जा सकता था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

ओवैसी का तीखा पलटवार: ‘अगर संघ की सोच सही होती तो मोदी चाय नहीं बेचते’

AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इस बयान को लेकर प्रधानमंत्री मोदी पर जोरदार हमला बोला। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा:

“अगर वक्फ संपत्ति का बेहतर इस्तेमाल होता तो मुसलमानों को पंक्चर नहीं बनाना पड़ता—ये पीएम मोदी का बयान है। लेकिन अगर संघ की सोच देशहित में होती, तो शायद मोदी को चाय नहीं बेचनी पड़ती।”

उन्होंने आगे सवाल उठाया कि पिछले 11 सालों में मोदी सरकार ने गरीबों—चाहे वो हिंदू हों या मुसलमान—के लिए क्या किया है?

ओवैसी का तर्क: कमजोर किया जा रहा है वक्फ बोर्ड

ओवैसी ने कहा कि वक्फ संपत्तियों की दुर्दशा के पीछे असली कारण यह है कि:

  • वक्फ कानूनों को कमजोर रखा गया।

  • प्रशासनिक निगरानी हमेशा से कमजोर रही।

  • मोदी सरकार का हालिया संशोधन इसे और कमजोर बनाएगा।

मोदी का कांग्रेस पर हमला: ‘तुष्टिकरण का प्रमाण वक्फ संशोधन’

प्रधानमंत्री मोदी ने इस बहस में कांग्रेस को भी घसीटा और कहा:

“अगर कांग्रेस को मुसलमानों से सच्ची हमदर्दी है, तो किसी मुसलमान को पार्टी अध्यक्ष बनाए और 50% टिकट मुसलमानों को दे।”

उन्होंने 2013 में कांग्रेस द्वारा किए गए वक्फ कानून संशोधन को चुनावी तुष्टिकरण की नीति बताया।

आरक्षण का मुद्दा भी आया सामने

पीएम मोदी ने कहा कि:

  • बाबा साहेब अंबेडकर ने धर्म के आधार पर आरक्षण का विरोध किया था।

  • कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने इस सिद्धांत के खिलाफ जाकर मुस्लिम समुदाय को टेंडरों में आरक्षण दिया है।

राजनीतिक विश्लेषण: ‘पंक्चर बनाम चाय’ की सियासत

  • पीएम मोदी का “पंक्चर” वाला बयान जातीय और धार्मिक पृष्ठभूमि से जुड़ी समस्याओं को हाइलाइट करता है।

  • ओवैसी का जवाब “चाय बेचने” से लेकर संघ की सोच तक सवाल खड़े करता है।

यह बहस महज़ बयानबाज़ी नहीं, बल्कि वोट बैंक, धार्मिक ध्रुवीकरण, और संवैधानिक व्याख्या से जुड़ा बड़ा चुनावी मुद्दा बन चुकी है।

चुनावी मौसम में गरम हुई वक्फ पॉलिटिक्स

वक्फ कानून पर बयानबाज़ी चुनावी समर के बीच नया मोड़ ले रही है। ‘पंक्चर’ और ‘चाय’ जैसे प्रतीकों के जरिए राजनीति अब आम आदमी की पहचान और रोज़गार जैसे संवेदनशील मुद्दों पर आ चुकी है।

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