अब पानी भी बारूद है! पाकिस्तान ने कोर्ट जीता, भारत ने इरादा

Saima Siddiqui
Saima Siddiqui

दुनिया जब यूक्रेन, गाज़ा और मिडल ईस्ट के ड्रोन और रॉकेट में उलझी है, तब एशिया के दो परमाणु संपन्न पड़ोसी—भारत और पाकिस्तान—एक ऐसी चीज़ के लिए आमने-सामने हैं जिसे अब तक “फ्री फ्लो” माना जाता था: पानी।

और नहीं, ये कोई पानी पूरी वाला झगड़ा नहीं है! ये है सिंधु जल संधि 1960, जो अब 2025 में अपने सबसे विस्फोटक मोड़ पर है।

हादसा हुआ, मातम बाकी था… एयर इंडिया ऑफिस में डांस पार्टी चल रही थी!

पाकिस्तान का दावा, भारत का इंकार—कोर्ट बना अखाड़ा

पाकिस्तान को भारत की किशनगंगा और रतले जलविद्युत परियोजनाओं से दिक्कत है। उनका कहना है—”भारत, पानी रोक रहा है।”

भारत कहता है—भाई, Run-of-the-river प्रोजेक्ट है, कानून के दायरे में है।

पाकिस्तान इस झगड़े को लेकर Court of Arbitration पहुंचा, और कोर्ट ने हाल ही में पाकिस्तान के पक्ष में कुछ हिस्सों में सहमति जताई। कोर्ट ने यहां तक कह दिया कि भारत द्वारा अप्रैल में संधि को रोकने का निर्णय, कोर्ट की वैधता को प्रभावित नहीं करता।

मतलब साफ है—कोर्ट ने सुना, पर भारत ने नहीं माना।

पाकिस्तान का बयान: बात करें!

भारत का जवाब: बात बंद!

जैसे ही फैसला आया, पाकिस्तान बोला—”आइए बातचीत करें।”

भारत बोला—”हम इस कोर्ट को मान्यता नहीं देते, और इस फैसले को खारिज करते हैं।”

Foreign Ministry का दो टूक जवाब:ये अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाने की कोशिश है, न कि न्याय का फैसला।

भारत ने पहले ही अप्रैल में आतंकी हमलों के बाद सिंधु जल संधि को अस्थायी रूप से सस्पेंड कर दिया था। और अब ये सब कूटनीति का नया चेहरा है।

तो क्या वाकई पाकिस्तान जीता है? या ये चाल है भारत को फंसाने की?

दिखने में लगता है कि पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक “कानूनी जीत” मिल गई।
पर असल में ये “Emotional PR Victory” है—मतलब दुनिया को दिखाओ कि “हम बड़े शांतिप्रिय हैं, और भारत दादागिरी कर रहा है।”

भारत की रणनीति साफ है—“Don’t bend, don’t break.” अब भारत ना सिर्फ मैदान में डटा है, बल्कि यह दिखाना चाहता है कि वह पुराने कागजों से बंधा नहीं है।

क्या सिंधु जल संधि को भारत को अब पूरी तरह रद्द कर देना चाहिए?

वक़्त आ गया है ये सवाल पूछने का:

1960 की संधि क्या 2025 में भी जायज़ है?

क्या आतंकवाद को एक्सपोर्ट करने वाले देश से जल-साझेदारी संभव है?

क्या नदी के पानी को हथियार बनाया जाना चाहिए?

भारत की “मंशा” साफ है—अब हम मनोवैज्ञानिक खेल में नहीं फंसेंगे।

आग पानी में है! अगला युद्ध सीमा पर नहीं, शायद बांध पर होगा!

साफ है कि अब पानी भी बारूद बन चुका है। जहां एक ओर पाकिस्तान इसे “कूटनीतिक मौका” मान रहा है, वहीं भारत इसे “Strategic Red Line” कह रहा है। आने वाले हफ्ते और महीने इस पानी को उबाल सकते हैं—नदी में नहीं, राजनीति और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में।

पाकिस्तान को फैसला, भारत को फोकस

इस जलयुद्ध में फैसला भले कोर्ट का हो, पर इच्छाशक्ति भारत की है। अब देखना ये है कि भारत संधि से बाहर आता है, या पाकिस्तान इस “कागज़ी जीत” को अपनी सबसे बड़ी गलती बना बैठता है।

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