मोदी बने ‘धर्म चक्रवर्ती’ – भारत की आत्मा पर लगाया आध्यात्मिक तिलक

Ajay Gupta
Ajay Gupta

28 जून को नई दिल्ली में एक विशेष आध्यात्मिक आयोजन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘धर्म चक्रवर्ती’ की उपाधि से नवाज़ा गया। ये सम्मान उन्हें आचार्य विद्यानंद जी मुनिराज की 100वीं जयंती के अवसर पर दिया गया, जहां उन्होंने न केवल श्रद्धांजलि अर्पित की, बल्कि एक डाक टिकट और स्मृति सिक्के भी जारी किए।

मैं योग्य नहीं… – पर स्वीकार कर लिया सम्मान

प्रधानमंत्री ने भाषण की शुरुआत बेहद विनम्रता से की, मुझे ‘धर्म चक्रवर्ती’ की उपाधि दी जा रही है, लेकिन मैं खुद को इसके योग्य नहीं मानता।

हादसा हुआ, मातम बाकी था… एयर इंडिया ऑफिस में डांस पार्टी चल रही थी!

परंतु भारतीय संस्कृति में विनम्रता का एक अलग ही स्टाइल होता है – पहले इनकार, फिर स्वीकार – और फिर राष्ट्र को समर्पण।
मोदी जी ने कहा, “यह सम्मान मैं भारत के चरणों में समर्पित करता हूं।”

(और भारत ने भी इसे ट्विटर और WhatsApp पर वायरल कर दिया।)

जैन परंपरा और भारतीय सोच का संगम

मोदी ने आचार्य विद्यानंद जी की शिक्षाओं को भारतीय सभ्यता की आत्मा बताया। कहा, “आज जब हम उनकी जन्मशताब्दी मना रहे हैं, तो यह अवसर हमें संयम, सेवा और विचारशीलता की दिशा में सोचने पर मजबूर करता है।”

यानी राजनीति से आध्यात्म तक, संयम में भी विकास छिपा है – यह उनका संदेश था।

सेवा और अहिंसा ही भारत की पहचान

मोदी ने दोहराया कि भारत ने दुनिया को हमेशा अहिंसा और मानवता का मार्ग दिखाया है। आचार्य विद्यानंद जी का जीवन भी इस विचारधारा की मिसाल रहा है।
उन्होंने कहा –“जब दुनिया हिंसा से हिंसा मिटा रही थी, भारत ने करुणा का दीप जलाया।”

क्या कहता है ये सम्मान?

‘धर्म चक्रवर्ती’ की उपाधि केवल एक रस्मी सम्मान नहीं, बल्कि यह संकेत है कि भारत अब आध्यात्मिक विरासत को भी विकास योजना का हिस्सा बना रहा है।
जहां एक ओर रोडमैप और बजट हैं, वहीं अब संयम, साधना और सम्मान भी है।

“धर्म का चक्र अब घूम चुका है।
नेता अब मुनियों के मंच पर हैं।
और मुनि – ट्रेंड में!”

अगर कल को IRCTC टिकट पर “धर्म चक्रवर्ती की स्पेशल सीट” दिख जाए, तो चौंकिएगा मत।

संविधान से चिढ़ है इन्हें! – राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर आरएसएस को घेरा

Related posts