
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में चल रही वोटर लिस्ट की स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न प्रक्रिया को रोकने से साफ इनकार कर दिया। कोर्ट की दो जजों की बेंच – जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची – ने साफ किया कि मामला गंभीर है, पूरी सुनवाई की जाएगी, अगली तारीख 28 जुलाई 2025 तय की गई है।
स्टे न मिलने पर कांग्रेस के चेहरे पर ऐसी खुशी आई जैसे चुनाव जीत ही लिया हो।
बंगाली बोले तो बांग्लादेशी? बिजली काटो, पर तर्क तो जोड़ लो
कांग्रेस की तुरही: “SC ने माना राशन-आधार भी दस्तावेज़ हैं, ये तो हमारी बात थी!”
सांसद प्रमोद तिवारी ने कहा, “कोर्ट ने माना कि राशन कार्ड और आधार कार्ड को भी दस्तावेज़ माना जाना चाहिए – ये तो हमारी भी मांग थी।” यानि अगर कोर्ट ने कहा कि सूरज पूरब से उगता है, तो कांग्रेस बोले – “देखा! यही तो हम कब से कह रहे थे!”
दस्तावेज़ों की 11 वाली लिस्ट: EC बोले – “Final नहीं है भाई!”
चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने जब कोर्ट को बताया कि इलेक्शन कमीशन की तरफ़ से 11 दस्तावेज़ों की एक लिस्ट बनाई गई है, तो कोर्ट ने कहा – “ये अंतिम नहीं लगती।” फिर कोर्ट ने तीन खास नाम लिए: आधार कार्ड, ईपीआईसी (वोटर ID) और राशन कार्ड – इन्हें मानने से आधे झगड़े निपट सकते हैं।
लोकतंत्र या दस्तावेज़ों का कुम्भ मेला?
अब बिहार में मतदाता बनने के लिए पासपोर्ट, बिजली बिल, राशन कार्ड, आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, बैंक स्टेटमेंट, और शायद आने वाले समय में Netflix का सब्सक्रिप्शन भी मांगा जा सकता है।
कौन कहता है कि नागरिकता जन्म से मिलती है? यहाँ तो दस्तावेज़ जमा कराओ और लोकतंत्र में नाम लिखवाओ!
कोर्ट ने कुछ कहा नहीं, फिर भी सियासत गरम
कोर्ट ने न तो कोई आदेश जारी किया, न ही रिवीजन प्रक्रिया पर रोक लगाई। लेकिन कांग्रेस की बॉडी लैंग्वेज कुछ ऐसी थी जैसे:
“अभी तो सिर्फ़ बहस हुई है, लेकिन जीत हमारी ही होगी, क्योंकि दस्तावेज़ों की बात हमने भी की थी।”
राजनीति में इसे कहते हैं – बात का बतंगड़, और बतंगड़ से वोट बैंक का जोड़-घटाव।
दस्तावेज़ जमा करिए, लोकतंत्र में प्रवेश पाइए
जिन्हें वोट देना है, उन्हें पहले प्रूफ देना होगा कि वो वाकई अस्तित्व में हैं – वो भी सरकारी रजिस्टर्ड दस्तावेज़ों से। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से लगता है कि अब राजनीति दस्तावेज़ों के नाम पर ही खेली जाएगी – और पार्टियाँ इसे अपनी जीत या हार बताएंगी।
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