सियासत में ‘भाईचारा’ सिर्फ तब तक… जब तक कुर्सी चमक रही हो!

शालिनी तिवारी
शालिनी तिवारी

सियासत में दोस्ती वैसी ही होती है जैसे मोबाइल की बैटरी — जब तक फुल चार्ज है, सब कॉल कर रहे हैं। पर जैसे ही सत्ता की बैटरी डाउन हुई, तो वही लोग फोन उठाना भूल जाते हैं। नेताओं के साथ की कहानी भी कुछ ऐसी ही है — “कुर्सी हो तो बंदगी, वरना बंद दरवाजे”।

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कुर्सी गई, तो पहचान भी गई

कभी मंच पर बगल में खड़े होकर फोटो खिंचवाने वाले लोग, अब व्हाट्सएप पर ब्लू टिक भी नहीं दे रहे।
राजनीति में “साथी” का मतलब होता है — “सत्ता साथी”।

सूरज अस्त होते ही जो चेहरों की भीड़ होती थी, वो छंट जाती है जैसे लोकसभा चुनाव के बाद पुराने मेनिफेस्टो।

सियासत में नमक तो बहुत है, पर वफादारी में कमी

“भाई जान, हम तो आपके अपने हैं” — ये डायलॉग सियासत में उतना ही सच्चा होता है, जितना शादी में मिलने वाला रसगुल्ला बिना चीनी का।
राजनीति में लोग नमक खाते हैं, पर ज़रा भी देर हुई तो आपको ही नमक बना देते हैं — यानी मिटा देते हैं।

सत्ता गई मतलब नेटवर्क चला गया

कल तक जो मीडिया बाइट में “हमारे प्रिय नेता” कहता था, आज वही रिपोर्टर आपको “पूर्व नेता” कहकर चलता कर देता है।

कभी लंच टेबल पर सेंटर सीट, अब बुलावे पर भी कोई नहीं आता। सियासत का ‘Do Not Disturb’ मोड सूरज के साथ एक्टिवेट हो जाता है।

राजनीति में दोस्ती नहीं, सिर्फ उपयोगिता होती है। जब तक सूरज चमक रहा हो, तब तक ही चांद, तारे और बादल साथ रहते हैं। सूरज अस्त हुआ नहीं कि, ‘नेटवर्क आउट ऑफ सर्विस’!

ना शिया, ना सुन्नी, हिंदू या मुसलमान—हुसैन के दीवाने बस इंसान होते हैं

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