
चीन में हुई शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की रक्षा मंत्रियों की बैठक में भारत ने एक असामान्य और साहसी निर्णय लिया। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उस साझा स्टेटमेंट पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया, जिसमें आतंकवाद का कोई ज़िक्र नहीं था।
भारत ने साफ कहा — “जिस संगठन की नींव आतंकवाद से लड़ने के लिए रखी गई थी, अगर वही चुप्पी साधे, तो भारत साथ नहीं खड़ा हो सकता।”
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एस जयशंकर की पुष्टि – आतंकवाद के बिना हम स्टेटमेंट में शामिल नहीं होंगे
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस निर्णय का स्पष्ट समर्थन करते हुए कहा, “SCO की स्थापना ही आतंकवाद से लड़ने के लिए हुई थी। अगर कोई देश इसका ज़िक्र नहीं चाहता, तो हम ऐसे साझा बयान का हिस्सा नहीं बन सकते।”
उन्होंने बिना देश का नाम लिए इशारा किया कि एक देश ने आपत्ति जताई थी कि बयान में आतंकवाद को शामिल न किया जाए।
रणधीर जायसवाल की बात – भारत की चिंता अनदेखी नहीं करेगा कोई
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने भी गुरुवार को बयान दिया कि “हमारी आतंकवाद को लेकर गंभीर चिंताएं थीं। हमने चाहा कि इनका दस्तावेज़ में उल्लेख हो। लेकिन जब एक देश ने विरोध किया, तो स्टेटमेंट फाइनल नहीं हुआ।”
भारत का संदेश – कूटनीति में मजबूती से पीछे नहीं हटेगा देश
भारत का यह कदम राजनीतिक-सामरिक संकेत देता है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत अब मूक समर्थन की बजाय सक्रिय नेतृत्व चाहता है। विशेष रूप से जब बात आतंकवाद जैसी वैश्विक चुनौती की हो — भारत डिप्लोमेसी को नैतिक मूल्यों से अलग नहीं देखता।
कौन था वो देश जिसने आतंकवाद शब्द पर आपत्ति जताई?
हालांकि किसी देश का नाम आधिकारिक रूप से नहीं लिया गया, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक संकेत दे रहे हैं कि यह संभवतः पाकिस्तान या चीन हो सकता है, जिनके भारत से आतंकवाद को लेकर तीखे मतभेद हैं।
भारत की चुप्पी नहीं, स्पष्टता की नीति
SCO जैसे बहुपक्षीय मंचों पर भारत का ये रवैया स्पष्ट करता है कि राजनीतिक एकता का कोई मतलब नहीं अगर सिद्धांतों से समझौता हो। भारत अब सिर्फ सदस्य नहीं, मूल्य आधारित लीडरशिप की भूमिका में रहना चाहता है।