
उत्तर प्रदेश में राजनीति यूं तो हर रोज़ किसी न किसी मोड़ पर खड़ी दिखती है, लेकिन इस बार समाजवादी पार्टी (सपा) ने अपने ही नेताओं को ‘रिवर्स मोड़’ दे दिया है। पार्टी ने तीन विधायकों को “सिद्धांत-विरोधी ड्राइविंग” के चलते तुरंत निष्कासित कर दिया। सपा के मुताबिक, इन नेताओं ने PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) नीति को धोखा दिया — और पार्टी को यह धोखा कतई पसंद नहीं आया।
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कौन-कौन हुए बाहर?
सपा ने ट्विटर (माफ कीजिए, अब X) पर बड़ी सफाई और थोड़ी सख्ती के साथ तीन विधायकों के निष्कासन की घोषणा की:
अभय सिंह – विधायक, गोशाईगंज
राकेश प्रताप सिंह – विधायक, गौरीगंज
मनोज कुमार पांडेय – विधायक, ऊंचाहार
इन तीनों पर आरोप है कि ये पार्टी लाइन के बजाय “लाइन तोड़ो आंदोलन” में लिप्त थे — और सबसे गंभीर बात, ये PDA विरोधी ताकतों के साथ “सैफई-संस्कृति” के खिलाफ साजिश रचते पकड़े गए।
पार्टी बोली: “समाजवादी विचारधारा की अनदेखी नहीं चलेगी”
पार्टी ने बयान में कहा — इन नेताओं को पहले ‘अनुग्रह अवधि’, यानी “भूल सुधारो या भूल जाओ” टाइप मौका दिया गया था। लेकिन जब कुछ नहीं बदला, तो पार्टी ने उन्हें सीधा Exit गेट दिखा दिया।
“जहां रहें, विश्वसनीय रहें।”
— समाजवादी पार्टी
यानी पार्टी अब ‘गृह शुद्धि’ मोड में है, और संदेश साफ है: “भटकने वालों के लिए दरवाज़ा खुला है… बाहर जाने के लिए!”
2027 विधानसभा चुनाव की तैयारी या पार्टी की रीब्रांडिंग?
राजनीतिक विश्लेषक इसे सपा की रणनीतिक सख्ती और 2027 विधानसभा चुनाव के लिए संगठन को कठोर अनुशासन की ओर मोड़ने की कवायद मान रहे हैं। मतलब, अब टिकट सिर्फ “पुराना सपा चेहरा” होने पर नहीं, “विचारधारा के प्रति वफादार” होने पर मिलेगा। अब PDA सिर्फ वोट बैंक नहीं, लोयल्टी टेस्ट बन चुका है — और जो इसमें फेल हुआ, उसका पॉलिटिकल ट्रांसफर सर्टिफिकेट रेडी है।
जनता की नहीं सुनी तो अब पार्टी आपकी नहीं सुनेगी
यह घटनाक्रम बताता है कि अब सपा सिर्फ जनभावना के नाम पर झंडा उठाने वाली पार्टी नहीं रही — बल्कि नियम-पालन और लाइन में रहने की परीक्षा लेने वाली संस्था बन चुकी है। तो अगर कोई विधायक सपा में रहकर ‘सोशल इंजीनियरिंग’ की जगह ‘पॉलिटिकल इंजीनियरिंग’ करने की सोच रहा है, तो उन्हें अब बाहर का रास्ता मिलना तय है।