
राजस्थान के टोंक जिले में मंगलवार दोपहर जो एक आम गर्मी की छुट्टी का दिन लग रहा था, वह जयपुर से आए 11 दोस्तों के लिए काल बन गया। बनास नदी की लहरें, जो दूर से शांत दिख रही थीं, पल भर में आठ जिंदगियां लील गईं।
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घटनास्थल: पुराना बनास पुलिया, टोंक सदर थाना क्षेत्र
जैसे ही तीन युवकों को बाहर निकाला गया, बाकी के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन ने युद्धस्तर पर काम शुरू किया। लेकिन आठ युवाओं की लाशें जब एक-एक कर नदी से निकलीं, तो सन्नाटा केवल पुलिस दस्ते में नहीं, पूरे शहर में फैल गया।
कौन थे ये युवक?
एसपी विकास सांगवान ने बताया:
“ये सभी युवक जयपुर के रहने वाले थे। एक निजी यात्रा के तहत टोंक आए थे। नदी में नहाते समय यह हादसा हुआ।”
तीन युवकों को स्थानीय ग्रामीणों और रेस्क्यू टीम की मदद से समय रहते बाहर निकाल लिया गया।
पूर्व सीएम अशोक गहलोत बोले:
“घटना बेहद दुखद है। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसी त्रासदियों की पुनरावृत्ति न हो।”
सचिन पायलट, विधायक (टोंक):
“टोंक भ्रमण पर आए युवकों के निधन की खबर हृदयविदारक है। ईश्वर परिजनों को सहनशक्ति दे। प्रशासन जिम्मेदारों पर कार्रवाई करे।”
“क्या हर खूबसूरत नदी के पास एक चेतावनी बोर्ड लगाना इतना मुश्किल है?”
इस दर्दनाक घटना ने फिर एक बार प्रशासन की सावधानी और सतर्कता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं:
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क्या ऐसी जगहों पर चेतावनी बोर्ड और सुरक्षा गार्ड नहीं होने चाहिए?
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पिकनिक स्पॉट्स की कोई सरकारी निगरानी या अनुमति प्रणाली क्यों नहीं?
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क्या रेस्क्यू टीम की तैनाती पहले से सुनिश्चित नहीं होनी चाहिए थी?
हादसा या लापरवाही?
बनास जैसी नदियों में मानसून से पहले पानी की सतह और प्रवाह अक्सर छलावा होता है। यह हादसा महज किस्मत का खेल नहीं, बल्कि सिस्टम की निष्क्रियता का परिणाम माना जा रहा है।
जयपुर के 11 दोस्तों की टोली, जो यादगार पलों की तलाश में टोंक पहुंची थी — उनमें से आठ अब केवल यादें बन गए।
बनास नदी की लहरों ने न सिर्फ युवाओं की जान ली, बल्कि एक बार फिर हमें याद दिलाया कि:
प्राकृतिक सौंदर्य के साथ प्रशासनिक ज़िम्मेदारी भी बहनी चाहिए — वरना हर नदी “मौत की घाटी” बनती रहेगी।
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