सीज़फायर पर मुंबई वालों की राय: क्या ये फाइनल पीस है या एक और ‘पॉज़’ बटन?

भोजराज नावानी
भोजराज नावानी

भारत और पाकिस्तान के बीच 4 दिन तक चले टकराव के बाद आए अचानक युद्धविराम की घोषणा पर मुंबई की सड़कों से लेकर सोशल मीडिया तक सवाल गूंजने लगे हैं — “आखिर ये कब तक टिकेगा?”

सीज़फायर पर लखनऊ वालों की राय: क्या ये वाकई शांति की शुरुआत है?

आइए जानते हैं मुंबई के विभिन्न तबकों से जुड़े नागरिकों की राय, जिसमें मुस्लिम समुदाय की आवाज़ भी शामिल है:

“हम शांति चाहते हैं, लेकिन आतंक से नहीं डरते” — नाजिया शेख (काउंसलर)

“हर मुस्लिम को शक की नजर से देखना गलत है। हमें शांति चाहिए, मगर मजबूरी की शांति नहीं। पाकिस्तान जब भी पीछे हटता है, उसकी चाल कुछ और होती है,” कहती हैं नाजिया।

“हमें कड़ी चेतावनी पसंद आई” — अयूब खान (टैक्सी चालक)

“मोदी सरकार ने इस बार सही कदम उठाया। पाकिस्तान को समझ आ गया कि अब भारत पहले जैसा नहीं रहा। अगर सीज़फायर हुआ है, तो डर की वजह से हुआ है,” कहते हैं अयूब।

“डिजिटल जनरेशन को युद्ध नहीं डेटा चाहिए” — सिमरन कपूर (स्टूडेंट)

“हम शांति में यकीन रखते हैं, लेकिन अपने देश की सुरक्षा को लेकर कोई कॉम्प्रोमाइज़ नहीं होना चाहिए,” कहती हैं डिजिटल मार्केटिंग की छात्रा सिमरन।

“हम मुंबईकर हैं, हम आतंक झेल चुके हैं” — मतीन कुरैशी (सेवानिवृत्त कर्मी)

“26/11 आज भी याद है। हमें कोई भरोसा नहीं कि पाकिस्तान सुधर गया है। भारत को चौकन्ना रहना होगा, क्योंकि दुश्मन की फितरत नहीं बदली है।”

“राजनीतिक मजबूरी ज़्यादा लगती है” — सुरेश जाधव (कॉर्पोरेट सलाहकार)

“हो सकता है सीज़फायर अंतरराष्ट्रीय दबाव में हुआ हो। लेकिन भारत को अब बार-बार माफ नहीं करना चाहिए। रूलबुक बदलनी होगी।”

जनमत का सार:

मुंबई में सीज़फायर को लेकर “सावधानी भरा समर्थन” दिखा। चाहे टैक्सी ड्राइवर हो या प्रोफेशनल्स, मुस्लिम समुदाय हो या अन्य — सभी की राय एक समान दिखी:
“शांति अच्छी है, मगर वह तब तक ही स्वीकार है जब वह हमारी मजबूती से निकली हो, न कि कमजोरी से।”

मुंबई, जिसने आतंकवाद की आग झेली है, आज भी पाकिस्तान की मंशा पर आंख मूंद कर भरोसा करने को तैयार नहीं। शहर के नागरिकों को शांति चाहिए, मगर साथ में गरिमा और सुरक्षा की गारंटी भी।

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