
उत्तर प्रदेश में संगठित अपराध के खिलाफ योगी सरकार की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा समर्थन मिला है। सुप्रीम कोर्ट ने कुख्यात माफिया और पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी की मौत की जांच की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। यह याचिका मुख्तार के बेटे उमर अंसारी ने दाखिल की थी, जिसमें एफआईआर दर्ज करने और एसआईटी जांच की मांग की गई थी।
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सुप्रीम कोर्ट का साफ संदेश
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप योग्य नहीं है और इसे राज्य स्तर पर ही देखा जाना चाहिए। इस निर्णय को योगी सरकार की सशक्त कानूनी रणनीति और ठोस तथ्यों की विजय के रूप में देखा जा रहा है। यह संदेश देता है कि उत्तर प्रदेश अब अपराधियों के लिए पनाहगाह नहीं, बल्कि कानून के सख्त पालन का क्षेत्र है।
मुख्तार अंसारी: अपराध और राजनीति का मिला-जुला चेहरा
गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद कस्बे का निवासी मुख्तार अंसारी 1986 से अपराध की दुनिया में सक्रिय था। हत्या, अपहरण, फिरौती, गैंगस्टर एक्ट, एनएसए समेत उस पर 65 से अधिक मामले दर्ज थे। रूगटा हत्याकांड, जेलर मर्डर केस और कृष्णानंद राय की हत्या जैसे बड़े केसों में उसका नाम प्रमुख रहा है।
8 मामलों में हो चुकी थी सजा
योगी सरकार के कार्यकाल में मुख्तार के खिलाफ कई मामलों में तेजी से अभियोजन हुआ। अब तक उसे 8 मामलों में दोषी ठहराया जा चुका है—जिनमें से कुछ में 10 वर्षों की जेल और दो में आजीवन कारावास की सजा भी शामिल है। गाजीपुर से लेकर पंजाब तक उसके खिलाफ मामले दर्ज हैं।
शासन की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति को मजबूती
यह फैसला दर्शाता है कि उत्तर प्रदेश सरकार संगठित अपराध के खिलाफ सिर्फ नीतिगत नहीं, बल्कि कानूनी स्तर पर भी पूरी ताकत से कार्रवाई कर रही है। सुप्रीम कोर्ट से मिली यह वैधानिक स्वीकृति आगे चलकर अन्य मामलों में भी एक मिसाल बन सकती है।
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