
धर्म और राजनीति आमने-सामने हों, तो बयान एक और प्रतिक्रिया हज़ार। इटावा में दिए गए कथावाचक फीस वाले बयान से समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव फिर चर्चा में हैं—इस बार धार्मिक और ब्राह्मण समुदाय के निशाने पर।
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‘गंगाजल स्नान’ की तैयारी: मिनी महापंचायत में बनी रणनीति
बागपत के खेड़की गांव में ब्राह्मण समाज की ‘मिनी महापंचायत’ आयोजित हुई, जिसमें तय हुआ कि अब सावन में हरिद्वार से कांवड़ में गंगाजल लाकर अखिलेश यादव की तस्वीर पर चढ़ाया जाएगा।
उद्देश्य? बुद्धि शुद्धि।
राजनीति में अब ‘शुद्धि सेवा’ भी उपलब्ध है—सिर्फ वोट नहीं, अब ज्ञान भी मांगा जाएगा।
दांडी स्वामी ने कहा, “अखिलेश लक्ष्मण रेखा लांघ चुके हैं, अब अंजाम भुगतने को तैयार रहें।” अगली चेतावनी ये रही—अगर ज़रूरत पड़ी तो संसद के बाहर लाठियां खाने को भी तैयार हैं, आखिर ये धर्म और समाज का सवाल है… और लाठी खाते-खाते तो अब आदत भी हो गई है।
2027 में होगा राजनीतिक बहिष्कार?
महापंचायत के दौरान एक और प्रस्ताव पास हुआ—2027 के चुनाव में अखिलेश यादव का सियासी बहिष्कार। समाज का कहना है, “जो संतों और ब्राह्मणों का सम्मान नहीं करता, वह मुख्यमंत्री बनने लायक नहीं।”
क्या कहा था अखिलेश ने?
इटावा में कथावाचक धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री पर कथाओं के बदले मोटी फीस लेने का जिक्र करते हुए अखिलेश ने कहा था कि “धर्म अब धंधा बन चुका है।” इस पर न सिर्फ अयोध्या के संत राजू दास, बल्कि ब्राह्मण संगठनों ने भी तीखी आपत्ति जताई।
बाबा धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का जवाब: सहने की शक्ति ही साधु की पहचान
धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने इस विवाद में सीधे किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन बड़ी सादगी से कहा, मैं बातों से नहीं, रातों से लड़ा था। मैं सह-सहकर साधु बना हूं। भगवान करें, जिनकी रोटी हमारे नाम पर पच रही है, वो पचती रहे।
इस जवाब से यह तो साफ हो गया कि बाबा विवाद से ऊपर रहना चाहते हैं, लेकिन अनुयायी अब मैदान में उतर आए हैं।
सियासत में अब ‘बुद्धि शुद्धि’ भी ट्रेंड में
बीजेपी नेता कुलदीप भारद्वाज ने भी अखिलेश पर तीखा हमला बोला और कहा, “गंगाजल से फोटो पर चढ़ाकर हम उनकी समझदारी को फिर से रिचार्ज करेंगे।”
अब ‘Recharge Plans’ सिर्फ मोबाइल के लिए नहीं, नेताजी की बुद्धि के लिए भी आने लगे हैं।
क्या सियासत में टिप्पणी करने की कीमत ‘गंगाजल’ से चुकानी होगी?
धर्म, आस्था और राजनीति का कॉकटेल इस बार ज्यादा तीखा बन गया है। एक तरफ ब्राह्मण समाज ‘बुद्धि शुद्धि’ की तैयारी में है, दूसरी ओर अखिलेश यादव खामोश हैं।
क्या यह बयानों का असर है या चुनावों की आहट?
और सबसे अहम सवाल—अब गंगाजल भी राजनीति का हथियार बन चुका है?
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