“जिहाद” का असली मतलब क्या है — और कैसे आतंकी सरगनाओं ने इसे बदनाम कर दिया?

आशीष शर्मा (ऋषि भारद्वाज)
आशीष शर्मा (ऋषि)

“जिहाद” — एक शब्द, जिसे सुनते ही आज दिमाग़ में AK-47, बम, आतंकी और आईएसआईएस जैसे दृश्य उभर आते हैं। लेकिन सवाल ये है कि क्या असली जिहाद वाकई ऐसा ही होता है? या फिर यह एक मासूम मज़हबी शब्द है जिसे कट्टरपंथियों ने अपने एजेंडे का हथियार बना दिया?

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जिहाद का असली मतलब क्या है?

“जिहाद” का अर्थ होता है — संघर्ष करना, मेहनत करना, बुराई के ख़िलाफ़ आत्म-सुधार का प्रयास
इस्लामी सिद्धांतों के अनुसार, जिहाद दो प्रकार का होता है:

  1. अल-जिहाद अल-अकबर (बड़ा जिहाद):
    आत्मसंयम, ग़ुस्से पर काबू, लालच से दूर रहना और नैतिकता के साथ जीवन जीना।

  2. अल-जिहाद अल-असघर (छोटा जिहाद):
    किसी अन्याय या अत्याचार के विरुद्ध, सीमित परिस्थितियों में आत्मरक्षा हेतु संघर्ष।

ध्यान दें — यह भी सशर्त है, कि निर्दोषों की जान न जाए, और हिंसा अंतिम विकल्प हो। लेकिन आतंकियों ने यहीं से ग़लत मोड़ ले लिया।

आतंकी सरगनाओं ने क्या किया?

कट्टरपंथी संगठनों और आतंकी सरगनाओं ने जिहाद को बना दिया — “धर्म के नाम पर युद्ध” का लाइसेंस।

  • बच्चों को आत्मघाती हमलावर बना दिया गया।

  • जिहाद को स्वर्ग की टिकट की तरह बेचा गया।

  • औरतों को ‘जन्नत की वस्तु’ बताकर recruitment का टूल बना दिया गया।

असलियत में, ये “जिहाद” नहीं, जहालत है।

आतंकियों का एजेंडा: धर्म नहीं, राजनीति

जिन्होंने दुनिया के सबसे पवित्र शब्दों में से एक को बारूद से लपेट दिया, उनका मकसद इस्लाम नहीं, राजनीतिक नियंत्रण और क्षेत्रीय वर्चस्व है।
इन सरगनाओं ने ‘जिहाद’ को मीडिया में ब्रांड बना दिया — ताकि हर हमला धार्मिक लगे, जबकि हकीकत ये है कि:

“इनके जिहाद में धर्म सबसे कम और सत्ता सबसे ज़्यादा होती है।”

क्या नुकसान हुआ?

  • दुनियाभर में “जिहाद” शब्द को आतंकवाद से जोड़ दिया गया

  • मुस्लिम समुदाय को शक की नज़रों से देखा जाने लगा।

  • असली जिहादी यानी आत्म-सुधार करने वाले लोग — सवालों के घेरे में आ गए।

“जिहाद” यानी खुद से लड़ना, ना कि दूसरों पर हमला करना।

लेकिन अफ़सोस कि कुछ लोगों ने इस पवित्र शब्द को हेट ब्रांड बना दिया है, जिससे अब लड़ाई सिर्फ आतंक से नहीं, जिहाद की गलत समझ से भी है।

“असल जिहाद वही है जो इंसान को बेहतर बनाए, ना कि इंसानियत को खत्म करे।”

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