मोहन यादव के नेतृत्व में मध्य प्रदेश: सरकार और संगठन में क्या बदला?

सत्येन्द्र सिंह ठाकुर
सत्येन्द्र सिंह ठाकुर

भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने जब 11 दिसंबर 2023 को, घोषणा की कि मोहन यादव मध्य प्रदेश के 19वें मुख्यमंत्री होंगे, तो यह एक रणनीतिक और चौंकाने वाला फैसला था। शिवराज सिंह चौहान जैसे कद्दावर नेता के बाद एक अपेक्षाकृत युवा और सधे हुए नेता को कमान सौंपना केवल चेहरा बदलना नहीं था — यह पार्टी के राजनीतिक और प्रशासनिक दृष्टिकोण में बदलाव का संकेत था।

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नेतृत्व में बदलाव: युवा चेहरा, नई उम्मीदें

मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाना एक संदेश था — बीजेपी अब नए चेहरों को सामने लाकर लंबी रेस की तैयारी कर रही है।

  • उम्र: 50 के करीब

  • शैक्षणिक पृष्ठभूमि: संस्कृत के प्रोफेसर, विद्वत्ता की छवि

  • राजनीतिक छवि: कम विवादित, संगठन के प्रति वफादार

सरकार में बदलाव: मंत्रिमंडल का नया स्वरूप

मोहन यादव के नेतृत्व में बने नए मंत्रिमंडल में कई पुराने चेहरों को हटाया गया और नए चेहरों को मौका मिला।

  • महिला और युवा नेताओं को प्राथमिकता

  • विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य पर ज़ोर देने वाले मंत्रियों की नियुक्ति

  • संतुलन साधा गया – क्षेत्रीय और जातीय प्रतिनिधित्व

संगठन में सर्जरी: RSS की छाया में नए समीकरण

सरकार के साथ-साथ संगठन में भी बड़े फेरबदल किए गए:

  • प्रदेश अध्यक्ष बदला गया

  • जिलों में संगठनात्मक पुनर्संरचना

  • RSS के साथ समन्वय और मजबूती

  • युवा मोर्चा और महिला मोर्चा को एक्टिव किया गया

विकास योजनाओं की रफ्तार

मोहन यादव सरकार ने शुरुआती 100 दिनों में ही कई घोषणाएं कीं:

  • “सस्ती बिजली योजना” का विस्तार

  • “लाडली बहना योजना” को और व्यापक बनाया

  • नए मेडिकल कॉलेज और एक्सप्रेसवे की घोषणा

  • ई-गवर्नेंस और डिजिटल इंडिया मिशन के साथ एकरूपता

राजनीतिक रणनीति: 2028 की तैयारी शुरू

भविष्य की रणनीति स्पष्ट है —

  • मोदी-शाह के भरोसेमंद नेता के रूप में मोहन यादव को तैयार करना

  • जनसंपर्क अभियान तेज़ करना

  • OBC और SC वर्गों में पकड़ मजबूत करना

  • कांग्रेस के खेमे में सेंध लगाना

मोहन युग की शुरुआत

मोहन यादव का मुख्यमंत्री बनना सिर्फ चेहरा बदलने का मामला नहीं है — यह मध्य प्रदेश में BJP की राजनीतिक रणनीति का ट्रांसफॉर्मेशन है। अब देखना यह है कि क्या वे जनता की उम्मीदों पर खरे उतरते हैं या यह बदलाव सिर्फ चुनावी गणित तक ही सीमित रह जाएगा।

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