
महाराष्ट्र की राजनीति में जहां हर रोज़ नए मोड़ आते हैं, वहीं राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे की कहानी एक ऐसी पेंच है, जो कभी खत्म ही नहीं होती। इन दोनों के बीच का “प्यार-तकरार” तो एक लंबे समय से दर्शकों का मनोरंजन करता आ रहा है। अब राज ठाकरे ने संकेत दिया है कि वह और उद्धव ठाकरे एक बार फिर साथ आ सकते हैं। सुनकर अच्छा लगा ना? बिल्कुल वैसा ही, जैसा हर रोमांटिक फिल्म में होता है — जहां दो “मनमुटाव” के बाद, अंत में दोनों एक साथ हो जाते हैं, और हम सभी को यह यकीन दिलाया जाता है कि प्यार हर समस्या का हल है।
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“हमारे बीच की लड़ाई, बिचारे महाराष्ट्र के लिए कुछ नहीं”
राज ठाकरे ने महेश मांजरेकर के यूट्यूब चैनल पर बताया कि उनके और उद्धव के बीच जो भी झगड़े हैं, वो बहुत छोटी बातें हैं, क्योंकि “महाराष्ट्र और मराठी लोगों के हित के लिए हमें एक साथ आना कोई बड़ी बात नहीं है।”
अब क्या कहें, इतना तो राजनीति में भी हो सकता है, सही है ना? भाई, राजनीति के मैदान में ‘स्वार्थ’ और ‘नफरत’ कभी स्थायी नहीं होते। अगर कल किसी मुद्दे पर सत्ता के लिए हाथ मिलाने का मौका मिले, तो कोई भी किसी भी वक्त ‘सुलह’ करने को तैयार हो सकता है। ये वही राज ठाकरे हैं, जिनका इस्तीफा 2005 में हुआ था, और अब कह रहे हैं, “बड़ी तस्वीर देखनी चाहिए।” राजनीति में ‘बड़ी तस्वीर’ देखने का मतलब – खुद के स्वार्थ को छोड़कर अपने दुश्मन से हाथ मिलाना।
शिंदे का ट्रैक: “किसी और के अधीन काम नहीं करूंगा!”
अब राज ठाकरे ने कहा कि वह कभी भी किसी और के अधीन काम नहीं करेंगे, और यही वही भावना थी जब उन्होंने शिवसेना छोड़ी थी। अब, यह बयान इस तरह से समझें कि राजनीति में सबसे बड़ा काम “अपना स्वार्थ और अहंकार” होता है। अगर स्वार्थ साइड में हो, तो राजनीति में कभी भी किसी से हाथ मिलाना गलत नहीं!
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उद्धव से भी कहा गया कि “कोई तकरार नहीं थी,” लेकिन हम जानते हैं, महाराष्ट्र की राजनीति में ये चीज़ें बहुत ही “सुनहरी तस्वीर” जैसी होती हैं — जहां सब कुछ इतना “प्यारा” दिखता है, लेकिन अंदर से वो गहरे राज होते हैं। अब ये कहना कि “मैंने कभी कोई झगड़ा नहीं किया” — यह शायद उस आत्मविश्वास का नतीजा है जो चुनावी हार के बाद आ जाता है।
“महाशक्ति बनने का ख्वाब”
राज ठाकरे ने यह भी कहा कि अगर सभी राजनीतिक दल मिलकर एक साथ एक पार्टी बना लें, तो “हम महाराष्ट्र पर राज करेंगे”। अब बताइए, किसी ने पूछा कि “राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे की पार्टियों की परफॉरमेंस 2024 चुनाव में कैसी रही?” तो जवाब क्या होगा? खाता भी नहीं खुला, लेकिन ‘राज’ तो राज ही रहेंगे। राजनीति में अगर इरादे साफ हों, तो बेशक पार्टी बनानी पड़े, उसे जीतने की जगह ‘राज’ बना दिया जाता है।
भाजपा के साथ जाने पर “जो होगा, देखा जाएगा”
अब जब महेश मांजरेकर ने सवाल किया कि क्या राज ठाकरे भाजपा के साथ जाएंगे, तो उनका जवाब था, “राजनीति में कभी नहीं कहा जा सकता, क्या हो जाए!” यानी कि जब स्वार्थ और सत्ता का सवाल हो, तो किसी भी दिशा में मुड़ सकते हैं। वही राज ठाकरे जिन्होंने भाजपा के खिलाफ भी बड़े-बड़े बयान दिए थे, आज कह रहे हैं कि राजनीति में सब कुछ बदलता रहता है। राज ठाकरे और भाजपा का गठबंधन, यह पूरी तरह से ‘राजनीतिक पैंतरा’ हो सकता है। सब कुछ हो सकता है!
2024 विधानसभा चुनाव में दोनों की परफॉर्मेंस: अब क्या होगा?
अगर 2024 विधानसभा चुनाव में उद्धव और राज दोनों की पार्टीयां जरा भी अच्छा प्रदर्शन करतीं, तो शायद यह आर्टिकल नहीं लिखा जाता। लेकिन जब परिणाम आते हैं, तो पता चलता है कि दोनों की पार्टियों की परफॉरमेंस इतनी खराब रही कि कोई भी राजनीतिक पंक्ति के लिए तैयार नहीं था। अब जब भविष्य में ‘साथ आने’ का वक्त हो, तो कौन जाने… शायद इन दोनों का गठबंधन उस ‘चमत्कारी जोड़ी’ का रूप ले ले, जो हर झगड़े के बाद ‘माफ़ी’ मांगने का नया तरीका बना दे।
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इस ‘रियालिटी शो’ में क्या होगा?
राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे का यह ड्रामा न केवल महाराष्ट्र के लोगों के लिए, बल्कि देशभर के राजनीतिक विश्लेषकों के लिए भी दिलचस्प बना हुआ है। तो अब देखना यह है कि क्या ये दोनों नेता ‘तकरार के बाद’ एक साथ आकर महाराष्ट्र के राजनीतिक मंच पर ‘नई शुरुआत’ करेंगे या फिर यही पुराने घमंड और राजनैतिक खेल चलते रहेंगे?
कुल मिलाकर, महाराष्ट्र की राजनीति में अब कुछ भी असंभव नहीं है। राजनीति में जब भी कोई नया कदम उठाया जाता है, तो शायद वही सच्चाई होती है — “राजनीति में कुछ भी हो सकता है!”