नई दिल्ली : वक्फ संशोधन अधिनियम अब ये कोई मामूली सरकारी नोटिफिकेशन नहीं है, जनाब! ये तो ऐसा मुद्दा बन गया है जिसने राजनीति से लेकर धार्मिक संगठनों तक, सबको नींद से जगा दिया है। एक ओर सरकार इसे ‘मॉडर्न रिफॉर्म’ बता रही है, तो दूसरी ओर विपक्ष, मुस्लिम संगठन और अब थलापति विजय की पार्टी तक, इसे ‘संविधान का अपमान’ मान रहे हैं। हर कोई अपने-अपने चश्मे से इसे देख रहा है – कोई इसे पारदर्शिता मानता है, तो कोई धार्मिक अधिकारों की धुंध देख रहा है। ऐसे में सवाल उठता है – ये कानून वाकई सुधार है या फिर विवादों की एक नई स्क्रिप्ट? चलिए, इस पूरे तमाशे को थोड़ा विस्तार से समझते हैं।
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वक्फ कानून में बदलाव पर देशव्यापी बहस
वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को लेकर देशभर में विरोध और समर्थन की लहर चल रही है। विपक्षी दलों के साथ-साथ कई मुस्लिम संगठनों ने इस कानून को अल्पसंख्यकों के अधिकारों के खिलाफ बताया है और इसे संविधान विरोधी करार देते हुए कोर्ट का रुख किया है।
थलापति विजय की पार्टी भी सुप्रीम कोर्ट पहुंची
तमिल सुपरस्टार और अब राजनेता थलापति विजय की पार्टी ‘तमिलनाडु वेत्री कझगम’ (TVK) ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। उनका दावा है कि यह कानून अल्पसंख्यकों के अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता पर असर डालेगा। उन्होंने इसे भारतीय संविधान की मूल आत्मा के खिलाफ बताया है।
अदालत में बहस: समर्थन बनाम विरोध
सुप्रीम कोर्ट में इस कानून को लेकर पहले से ही कई याचिकाएं लंबित हैं। कोर्ट ने इन सभी पर सुनवाई के लिए 16 अप्रैल 2025 की तारीख तय की है। दिलचस्प यह है कि जहां एक ओर इस अधिनियम का तीखा विरोध हो रहा है, वहीं दूसरी ओर इसे पारदर्शिता और बेहतर प्रशासन के लिए जरूरी कदम मानकर कई लोगों ने समर्थन में अर्जियां दाखिल की हैं।
केंद्र सरकार का सक्रिय रुख
केंद्र सरकार इस मामले को लेकर बेहद सक्रिय है। उसने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट (Caveat) याचिका दायर कर यह मांग की है कि अदालत कोई भी फैसला देने से पहले सरकार का पक्ष जरूर सुने। सरकार का कहना है कि यह कानून वक्फ संपत्तियों की पारदर्शी व्यवस्था और बेहतर प्रबंधन के लिए जरूरी है और इसे एकतरफा नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए।
संवेदनशील मामला, व्यापक असर की आशंका
यह कानून धार्मिक स्वतंत्रता, अल्पसंख्यक अधिकार और संपत्ति प्रबंधन जैसे कई संवेदनशील पहलुओं से जुड़ा हुआ है। विशेषज्ञ मानते हैं कि इसका असर न केवल कानूनी बल्कि सामाजिक और राजनीतिक रूप से भी महसूस किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पूरे देश की निगाहें टिकी हैं।
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