बॉलीवुड का ट्रेंड है — “पुरानी फिल्म को पकड़ो, उसमें नया हीरो डालो और गाना रीमिक्स करके रिलीज़ कर दो।”
वहीं साउथ सिनेमा बोलता है — “हमारी कहानियों में मिट्टी की खुशबू है, माँ की ममता है और एक्शन भी ऐसा कि कुर्सी की पेटी बांध लो!”
कांतारा ने बताया कि लोककथाएं भी सुपरहिट हो सकती हैं। आरआरआर ने अंग्रेजों को धुआँ कर दिया और ऑस्कर जीत लिया। वहीं उधर, बॉलीवुड वाले “बड़े मियाँ छोटे मियाँ” को दोबारा छोटा बना बैठे।
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साउथ की फिल्मों में मिलते हैं संस्कार और भावनाएं
जब साउथ का हीरो माँ के पैर छूता है, दर्शकों की आँखें नम हो जाती हैं। जब बॉलीवुड का हीरो आता है, तो या तो वो ममी-पापा को भूल चुका होता है या फिर विलेन से पहले शर्ट खोल देता है। साउथ की कहानियाँ रिश्तों और मानवीय मूल्यों से जुड़ी होती हैं — वहीं बॉलीवुड अब रिश्तों की बजाय रिलेशनशिप्स और इंस्टाग्राम फॉलोअर्स में उलझ गया है।
कमाई में भी अब साउथ का ही जलवा
फिल्म | इंडस्ट्री | कमाई (₹ करोड़) |
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RRR | साउथ | 1200+ |
कांतारा | साउथ | 400+ |
पठान | बॉलीवुड | 1050 |
आदिपुरुष | बॉलीवुड (कहने को) | 393 (50% रीफंड के साथ) |
जब साउथ के डायरेक्टर्स बजट कम रखते हैं, तब भी कमाई आसमान छूती है।
वहीं बॉलीवुड के पास बड़ा बजट होता है, लेकिन स्क्रिप्ट के नाम पर खाली पन्ना।
क्यों साउथ सिनेमा ने दर्शकों का दिल जीत लिया है?
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लोकल स्टोरी – ग्लोबल अपील: गांव की कहानियों में भी इंटरनेशनल एंगल।
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एक्टर नहीं, कैरेक्टर: सुपरस्टार्स भी रोल में खुद को खो देते हैं।
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कल्चर ऑन स्क्रीन: रीजनल कल्चर की खूबसूरत प्रस्तुति।
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फिल्म नहीं, अनुभव: हर मूवी एक फेस्टिवल बन जाती है।
बॉलीवुड के पास अब क्या है?
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नेपोटिज़्म, रीमिक्स, रीसाइकल्ड स्क्रिप्ट और सोशल मीडिया ड्रामा।
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कभी लव ट्रायंगल, कभी लव-स्टोरी विद आउट स्टोरी।
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और सबसे बड़ी बात – “पब्लिक अब भाव नहीं दे रही!”
ऑडियंस नहीं, क्वालिटी डिसाइड करती है हिट कौन होगा
बॉलीवुड को अब साउथ से सिर्फ जलन नहीं, सीख भी लेनी चाहिए।
क्योंकि दर्शक अब सिर्फ बड़े नाम नहीं, बड़ी कहानी देखना चाहते हैं। और वो कहानी साउथ सिनेमा में है – जिसमें है इमोशन, डेडिकेशन और रजनीकांत वाला पावर!
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