
जब दुनिया यूक्रेन, गाज़ा और तेहरान के धमाकों में उलझी थी, तब साउथ एशिया की एक और सीमा चुपचाप सुलग रही थी। अब वो चुप्पी खत्म हुई — और पाक-अफगान रिश्तों में फिर घुल गया है अविश्वास का ज़हर।
शनिवार को पाकिस्तान के उत्तरी वज़ीरिस्तान में हुए आत्मघाती हमले में 13 सुरक्षाकर्मी मारे गए। इसके बाद पाकिस्तान ने बिना किसी चेतावनी के गुलाम खान बॉर्डर को बंद कर दिया। जी हां, भरोसे की सीमा अब सील है — और अफगान तालिबान पूछ रहे हैं, “भाई! बताकर जाते कम से कम?”
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“सुरक्षा खतरा” या “राजनीतिक ड्रामा”?
तालिबान के बॉर्डर प्रवक्ता अबीदुल्ला फारूकी ने कहा, “हमें बस इतना बताया गया कि रास्ता बंद है, अब वैकल्पिक मार्ग देख लो।”
यानि जैसे कोई शादी में न बुलाए और बाद में कहे, “कुर्सी कम पड़ गई थी”। सीमा पर ये कन्फ्यूज़न सिर्फ ट्रक और व्यापार को नहीं रोक रहा, यह साफ कर रहा है कि कूटनीति अब Google Map के रूट से चल रही है।
गुलाम खान बॉर्डर: ‘व्यापार मार्ग’ या ‘भरोसे की चिता’?
यह कोई साधारण सीमा नहीं थी। यहां से दाल-चावल नहीं, बल्कि ‘सहयोग की उम्मीदें’ भी रोज़ जाती थीं। अब वो भी अटक गई हैं। “खोस्त और उत्तरी वज़ीरिस्तान को जोड़ने वाला ये बॉर्डर अब सिर्फ फौजियों की बूटों की आवाज़ सुन रहा है।”
व्यापारियों को सलाह दी गई है कि तोरखम या स्पिन बोल्डक से जाएं, लेकिन वे पूछ रहे हैं — “कहीं अगली बारी इनकी तो नहीं?”
पुरानी कहानी, नया धमाका: टीटीपी फिर चर्चा में
पाकिस्तान फिर कह रहा है कि हमला अफगान ज़मीन से संचालित आतंकियों ने किया। अफगान तालिबान कह रहा है, “नहीं भैया, हमने किसी को नहीं घुसने दिया!”
अब मामला ऐसा है जैसे घर में चोरी हो और पड़ोसी कहे — “हम CCTV देख रहे थे, पर हमारी स्क्रीन ब्लैक थी।”
रिश्ते अब ‘भाईचारे’ से ‘बारूद’ तक
जिस तालिबान को पाकिस्तान ने कभी ‘भाई’ कहा था, अब उसके साथ सीमा पर झड़पों की नौबत आ चुकी है। सीमा बंदी बिना प्रेस कॉन्फ्रेंस के कर दी गई — जैसे किसी रिश्ते को seen-zoned कर देना। सवाल यह है — क्या अगली बार केवल सीमा बंद होगी या बुलेट्स ऑन बॉर्डर शुरू होंगे?
अगली जंग का प्रीव्यू?
अगर अब भी चेताया नहीं गया, तो गुलाम खान की खामोशी में छुपा यह तनाव किसी दिन गोली की गूंज बन सकता है। क्योंकि सीमा पर भरोसा एक बार हिल जाए, तो अगली मुलाकात आमने-सामने नहीं होती — सीधे मोर्चे पर होती है।
दोस्ती की सीमाएं, अब बंकरों में बदल रही हैं
राजनीति, व्यापार और सुरक्षा — तीनों की डोर अब टूट चुकी लगती है। पाक-अफगान रिश्ते उस मोड़ पर खड़े हैं, जहां एक और विस्फोट सिर्फ जान नहीं लेगा, भरोसे को भी जला देगा।
दुनिया अगर चौथे युद्ध क्षेत्र के लिए तैयार नहीं है — तो शायद इस बॉर्डर पर बातचीत की नहीं, शांति की कड़ी निगरानी ज़रूरी है।
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