
देश के चर्चित और बेबाक वकील उज्ज्वल देवराज निकम को राज्यसभा के लिए राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किया गया है। उन्होंने ये खबर खुद साझा करते हुए बताया कि ये जानकारी उन्हें सीधे प्रधानमंत्री मोदी से मिली — और वो भी मराठी में!
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“मोदी जी ने कहा – मराठी में बोलूं या हिंदी?”
निकम ने बताया, “पीएम मोदी का फोन आया। उन्होंने पूछा – ‘मराठी में बोलूं या हिंदी?’ मैंने कहा, आप तो दोनों में माहिर हैं।” और इसके बाद जो हुआ, वो तो ऐतिहासिक था — पीएम मोदी ने मराठी में बात कर के बताया कि राष्ट्रपति आपको राज्यसभा भेजना चाहती हैं।
कानून की किताबों से संसद की सीढ़ियों तक पहुंचने वाले निकम ने जवाब दिया – “हो! मंजूर आहे!”
बीजेपी नेतृत्व को धन्यवाद, पर कानून की टोपी नहीं उतरी
निकम ने जेपी नड्डा और देवेंद्र फडणवीस का आभार जताते हुए कहा कि उन्हें इस जिम्मेदारी से सम्मान मिला है। हालांकि वो यह भी स्पष्ट कर गए कि कानून और न्याय का रास्ता वे संसद में भी नहीं छोड़ेंगे।
“राज्यसभा जाऊंगा, लेकिन गवाह की तरह सच बोलता रहूंगा!” – निकम, शायद मन में बोले हों।
कौन हैं उज्ज्वल निकम?
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1993 मुंबई बम ब्लास्ट केस से लेकर कसाब ट्रायल तक, देश के सबसे हाई-प्रोफाइल मामलों में रहे अभियोजक
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एनकाउंटर, आतंकवाद, और गुनहगारों की चप्पलें तक खींचने वाले तर्क से मशहूर
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मराठी मानुष का गर्व, लेकिन न्याय की भाषा सबके लिए
अब क्या ?
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क्या निकम अब राज्यसभा में भी “जिरह” करेंगे, स्पीकर से अनुमति लेकर?
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क्या संसद में अब ‘आपत्ति स्वीकार’ कहने की आदत लग जाएगी?
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क्या सांसदों को अब ‘क्रॉस एग्ज़ामिनेशन’ से डरना पड़ेगा?
संसद में अब होगा “Cross-Examination” LIVE!
सोचिए, जब राज्यसभा में बहस चलेगी, और निकम जी खड़े होकर कहेंगे —
“माननीय सदस्य अपना साक्ष्य दें… नहीं तो मैं IPC की भावना से बोलूंगा!”
कहना गलत न होगा कि अब राज्यसभा में कानून की धाराएं सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं रहेंगी — वो माइक पर सुनाई देंगी।
“संसद में निकम, मतलब मुकदमा नहीं, मगर मज़ा आएगा!”
राज्यसभा को अब न सिर्फ नीति, बल्कि न्याय की नजर से देखने वाला एक अनुभवी चेहरा मिल गया है। उज्ज्वल निकम का मनोनयन एक राजनीतिक नहीं, संवैधानिक स्ट्रोक है — जिसमें कानून, न्याय और मराठी आत्मा, तीनों की गूंज है।
अब देखना ये है कि क्या निकम जी राज्यसभा में भी कहेंगे — “माई लॉर्ड, विपक्ष को समय सीमा में रखा जाए!”