
संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष पीपी चौधरी ने बताया कि अगर देश में एक साथ चुनाव करवा दिए जाएं तो देश की GDP पर 1.6% का सकारात्मक असर होगा और करीब ₹7 लाख करोड़ की बचत हो सकती है।
₹7 लाख करोड़! यानी उतने में आप चांद पर लोन लेकर फ्लैट बना सकते हैं और हर राज्य में चुनाव आयोग की जगह Netflix रख सकते हैं।
गंभीर, पर मीटिंगें हैं ज़्यादा
फिलहाल एक साथ चुनाव करवाने का विचार “अभी विचाराधीन” है। समिति ने आर्थिक पहलुओं पर विचार-विमर्श किया है, अगली बैठक 11 अगस्त को है, जहाँ राजनीतिक और सामाजिक वैज्ञानिक आमंत्रित हैं।
मतलब चुनाव से पहले साइंटिस्ट आएंगे, फिर थिंक टैंक, फिर थाली में पकवान, और तब जाकर वोटिंग की योजना बनेगी।
₹7 लाख करोड़ का सपना, लेकिन खर्च जारी है
अगर वाकई ₹7 लाख करोड़ की बचत हो सकती है, तो अब तक इतनी मीटिंगों में हम कितना खर्च कर चुके हैं?
एक अनुमान के मुताबिक:
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हर बैठक में 12 पेज प्रिंट
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हर प्रिंट पर ₹5
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कुल मीटिंग: 24
तो अब तक ₹1,440 की प्रगति हो चुकी है। बस ₹6,99,99,98,560 बचाने बाकी हैं।
जनता बोले: पहले बिजली बिल का असर बता दो, फिर GDP का
जनता सोच में है कि जब हर महीने बिजली का बिल 1.6% बढ़ने से ही जीडीपी ‘घर’ की गिर जाती है, तो एक साथ चुनाव से 1.6% GDP कैसे बढ़ेगी?
कहीं ये वही 1.6% तो नहीं जो हमेशा न्यूज़ डिबेट में आता है, पर सैलरी में नहीं?
चुनाव एक साथ हो या अलग-अलग, मज़ा मीटिंगों में है
“एक राष्ट्र, एक चुनाव” का आइडिया जनता को उतना ही दूर लग रहा है जितना रेलवे में समय से चलने वाली ट्रेन।
लेकिन आइडिया में संभावनाएं हैं:
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सरकार का खर्च घटेगा
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पोलिंग बूथ का टाइम बचेगा
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और शायद, जनता का नॉन-स्टॉप इलेक्शन ओवरडोज़ भी कम हो जाए
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