महाराष्ट्र में हिंदी हुई बैकबेंचर, मराठी टॉपर बनी

भोजराज नावानी
भोजराज नावानी

महाराष्ट्र में शिक्षा से ज़्यादा राजनीति पढ़ाई जा रही है — और ताजा पाठ्यक्रम में से हिंदी को बाहर निकाल दिया गया है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने खुद प्रेस कॉन्फ्रेंस कर यह ‘घोषणा-पत्र’ जारी किया कि स्कूलों में लागू की जा रही त्रिभाषा नीति (Tri-Language Policy) का पुराना आदेश रद्द किया जा रहा है। कारण? “मराठी मानुष नाराज़ हो गया था।”

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सरकार को आई ‘मराठी अस्मिता’ की याद

त्रिभाषा नीति के तहत पहली कक्षा से हिंदी पढ़ाए जाने का प्रस्ताव ऐसा लगा जैसे किसी ने मुंबई में वड़ा पाव में बटर चिकन भर दिया हो!
जैसे ही ये खबर वायरल हुई, राज ठाकरे की MNS और उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) ने बैनर छापने शुरू कर दिए और 5 जुलाई को विरोध मार्च तय कर दिया।

समिति बनाई गई, जिससे फैसला लेने में और वक़्त लगे

मुख्यमंत्री ने बताया कि अब एक नई कमेटी बनेगी जिसकी अध्यक्षता डॉ. नरेंद्र जाधव करेंगे। वो तय करेंगे कि त्रिभाषा नीति लागू किस क्लास से हो — पहली से या फिर उस क्लास से जब बच्चे खुद पूछें कि “तीसरी भाषा काहे पढ़ रहे हैं?”

समिति ने रिपोर्ट देने के लिए तीन महीने का समय मांगा है। यानी छात्रों को अगली परीक्षा तक तो राहत मिल ही गई।

उद्धव बोले – “मराठी ताकत के आगे सरकार झुकी”

उद्धव ठाकरे ने कहा कि ये फैसला मराठी लोगों की ताकत की जीत है। और जैसे ही सरकार झुकी, MNS और शिवसेना (UBT) ने 5 जुलाई का विरोध मार्च रद्द कर दिया।
हालांकि, उद्धवजी ने ये भी कहा कि 5 जुलाई को कार्यक्रम तो होगा ही — आंदोलन नहीं तो कम से कम माइक टेस्ट तो होना चाहिए।

भाषा की राजनीति में नीति की बत्ती गुल

यह मामला सिर्फ़ एक भाषा नहीं, भाषा की राजनीति का पाठ है। नीति बनी थी ‘त्रि-भाषा’ की, लेकिन हर पार्टी बोल रही थी अपनी ‘राजनीतिक भाषा’।
सरकार कहती है कि निर्णय “जन भावनाओं” के आधार पर लिया गया। मतलब ये कि बच्चों को क्या पढ़ाना है, ये अब भी मोर्चे और मार्च तय करेंगे

हिंदी गई छुट्टी पर, मराठी ने मारी एंट्री फिर से

फिलहाल, हिंदी को क्लास वन की छुट्टी मिल गई है और मराठी ने फिर से “पहली बेंच” पर कब्ज़ा कर लिया है। त्रिभाषा नीति पर अब त्रिस्तरीय चर्चा होगी और जब तक कमेटी रिपोर्ट देगी, महाराष्ट्र में भाषायी राजनीति का सेलेबस और लंबा हो चुका होगा।

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