
सिर्फ पेशा नहीं, सेवा है ये…हर साल 1 जुलाई को हम “डॉक्टर्स डे” मनाते हैं — सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं, फूलों के गुलदस्ते भेजते हैं, और “थैंक यू” बोलते हैं। लेकिन क्या कभी ठहरकर सोचा है कि एक डॉक्टर की असल जिंदगी कैसी होती है?
वो जो हर दिन जिंदगी और मौत के बीच पुल बनता है, खुद को भूला कर आपकी धड़कनों की हिफाजत करता है।
एक दिन की नहीं, जीवनभर की ड्यूटी
जब आम लोग छुट्टियों की प्लानिंग करते हैं, डॉक्टर तब भी ऑन कॉल होते हैं। त्यौहार हो, शादी हो या अपनों की विदाई — डॉक्टर अक्सर ड्यूटी पर ही होते हैं।
उन्हें नींद की भी किस्तों में आदत होती है, और भोजन कभी पूरा हो जाए तो चमत्कार लगता है। हर मरीज की चीख, उनकी आत्मा पर दस्तक देती है।
भावनाओं का गला घोंटना सीखते हैं डॉक्टर
हर दिन मौत देखना… हर दिन किसी की आंखों से उम्मीद टूटते देखना… वो आसान नहीं होता। लेकिन डॉक्टर को मुस्कुराना आता है।
क्योंकि उनके आंसू, मरीज की हिम्मत को तोड़ सकते हैं। इसलिए वो हर दर्द को भीतर दबाकर आगे बढ़ते हैं।
वो रोते हैं… पर अकेले में।
तनाव, थकान और अपेक्षाओं का बोझ
आज डॉक्टरों से न केवल इलाज बल्कि चमत्कार की उम्मीद की जाती है। हर गलती पर सोशल मीडिया की कोर्ट में उन्हें कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है।
वो एक इंसान हैं — मशीन नहीं। फिर भी दिन-रात सेवा में लगे रहते हैं। और किसी दिन… जब थक हारकर गिरते हैं, तो उनके अपने ही पूछते हैं, “इतना पैसा लेते हो, फिर थकते क्यों हो?”
फिर क्यों करते हैं ये सब?
क्योंकि जब किसी मां की आंखों में राहत आती है, जब किसी पिता की सांसें लौटती हैं, जब किसी बच्चे की धड़कन फिर से बजती है —
तो डॉक्टर के लिए वही पल दुनिया की सबसे कीमती तनख्वाह होता है।
डॉक्टर्स डे पर सिर्फ शुक्रिया नहीं, समझ भी दें
इस डॉक्टर्स डे पर सिर्फ “थैंक यू” कहने से कुछ नहीं होगा। आइए उनके प्रति सहानुभूति रखें। उनकी भी एक इंसानी दुनिया है — जहां दर्द है, डर है, थकान है और प्यार भी।
आज जरूरत है उन्हें सम्मान देने की, सिस्टम को सुधारने की, और ये समझने की कि डॉक्टर सिर्फ भगवान नहीं, बल्कि भगवान की तरह दिन-रात मेहनत करने वाला इंसान है।