बीजेपी की नई टीम: ‘बाहर से आए हैं, पहले भक्ति दिखाएं

सुरेन्द्र दुबे ,राजनैतिक विश्लेषक
सुरेन्द्र दुबे ,राजनैतिक विश्लेषक

राजस्थान की सियासी रसोई में BJP ने नया खिचड़ी मिश्रण पकाना शुरू कर दिया है। लेकिन इस बार तड़का लगाने वालों पर सवाल उठ रहा है — क्या वो “कांग्रेस से आयातित” हैं?

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बाहर से आए नेता – स्वागत है, लेकिन वेटिंग रूम में बैठिए

बीजेपी ने हालिया बयान में साफ किया कि जो नेता दूसरी पार्टियों से पार्टी में आए हैं, वो अब यूं ही पकोड़े तलते हुए पद नहीं पा सकते। पहले उन्हें पार्टी की रीति, नीति और निष्ठा का टेस्ट पास करना होगा। यह टेस्ट न तो UPSC है, न ही CAT… लेकिन फेल होने पर “कॉमन एंट्री” भी रद्द!

हारें, पर टीम में आने का सपना न हारें!

ज्योति मिर्धा, महेंद्रजीत सिंह मालवीय, गिर्राज मलिंगा जैसे नामचीन नेता जो कांग्रेस छोड़कर कमल में कूदे, उन्हें बीजेपी ने मौका तो दिया… मगर जनता ने नहीं। अब पार्टी सोच रही है — “सिर्फ नाम से क्या होगा, काम भी दिखाओ!”

‘हम आए थे मेहमान बनकर…’ लेकिन घर के लोग कब बनाएंगे?

कुछ नेता ऐसे हैं जिन्हें ज्वाइनिंग के दिन मंच पर फूलमालाएं मिलीं, पर अब पार्टी कार्यालय में गार्ड भी पहचानने से मना करता है। संगठन की बैठकों से गायब, बयानों में नदारद — ऐसे नेताओं के लिए BJP अब “काम करो, नाम मिलेगा” की पॉलिसी ला रही है।

BJP की नई शर्तें: पद चाहिए तो पसीना बहाओ!

प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ की मानें तो अब जो भी बाहरी नेता पद की उम्मीद रखते हैं, उन्हें पार्टी के लिए काम कर अपनी “वफादारी” साबित करनी होगी। बीजेपी अब बायोडाटा नहीं, “संघर्ष और संस्कार” देखेगी।

वसुंधरा राजे और अंदर की कलह: ‘अपने भी गैर हैं, और गैर भी पराए’

राजस्थान बीजेपी की टीम में पहले से ही खेमेबाज़ी की बर्फ जमी हुई है। वसुंधरा राजे का दर्द अजमेर में फिर छलका। ऐसे में नए नेता हों या पुराने, कोई भी अपनी कुर्सी को लेकर आश्वस्त नहीं।

जो लड़े वो जीते – कुछ अपवाद भी हैं!

कुछ बाहरी नेताओं जैसे दर्शन सिंह गुर्जर, रमेश खींची और रेवंतराम डांगा ने जीत भी दर्ज की है। लेकिन इनकी संख्या गिनती में है, और बाकी को अभी “पार्टी समर्पण पाठशाला” में बैठाया गया है।

तो क्या ये कांग्रेसियों की “पॉलिटिकल वापसी” का रास्ता है या राजनीतिक बेरोजगारी की शुरुआत?

कुल मिलाकर बीजेपी में घुसे बाहरी नेताओं की हालत उस छात्र जैसी है जिसने बिना पढ़े परीक्षा दे दी — अब रिवैल्यूएशन की उम्मीद में बैठे हैं।

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