
जब कोई शख्स व्हाइट हाउस को “ट्रंप टॉवर 2.0” बना दे, तो समझ जाइए राजनीति नहीं, बिज़नेस प्लान चल रहा है। डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति पद को न सिर्फ एक पावर पोस्ट, बल्कि एक ब्रांड एक्सटेंशन बना दिया।
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राजनीति में ये शायद पहली बार हुआ कि बजट मीटिंग के बजाय ‘डील मीटिंग’ और UN स्पीच में भी ‘रेटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट’ की सुगंध आती हो।
ट्रंप: Oval Office के CEO
“Make America Great Again” सिर्फ नारा नहीं, एक प्रोडक्ट था। इसकी मार्केटिंग वैसी ही थी जैसे ब्लैक फ्राइडे की सेल—लाल टोपी, चमकती मुस्कान, और 280 कैरेक्टर के ट्वीट्स में छिपा कॉर्पोरेट क्रोध।
व्हाइट हाउस अब Oval Office नहीं, बल्कि “Corner Office” बन चुका था। ट्रंप ने राष्ट्र को एक कंपनी की तरह चलाने की कोशिश की, जहाँ प्रेस कॉन्फ्रेंस भी प्रेस रिलीज़ जैसी लगने लगी।
अंतरराष्ट्रीय मंच या ट्रेड शो?
विदेश नीति? जी नहीं, इंटरनेशनल बिज़नेस ट्रिप!
“डिप्लोमेसी विथ डिस्काउंट” उनका ट्रेडमार्क स्टाइल —बस ट्विटर पर थोड़ा प्रेशर डालो, फिर डील करो।
व्हाइट हाउस का ब्रांड वैल्यू
ट्रंप की हर चाल, हर चालाकी, उनकी ब्रांड वैल्यू बढ़ाने में लगी रही। “ट्रंप यूनिवर्सिटी” से “ट्रंप पॉलिटिक्स” तक—सब एक लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टमेंट प्लान था।
यहां तक कि जब वे नीतियों की घोषणा करते, तो हेडलाइंस तक ट्रेंड होतीं—जैसे मार्केट में नया IPO लिस्ट हुआ हो।
जोखिम भी आया, लेकिन ब्रांड बचा
2020 के बाद ट्रंप की पॉलिटिकल मार्केट में गिरावट ज़रूर आई, लेकिन ब्रांड ट्रंप अभी भी “बिक” रहा है। रैलीज़ हों या मीडिया इंटरव्यू—हर चीज़ एक पेड एड की तरह लगती है, बस रजिस्टरिंग लिंक की कमी होती है।
राष्ट्रपति? नहीं, एक चलता-फिरता कॉर्पोरेशन!
डोनाल्ड ट्रंप ने राजनीति को एक एंटरप्राइज बना दिया।
उनका मंत्र: “देश चलाना है? तो पहले डील करो, बाद में डिस्कशन।”
दुनिया को अब यह समझना होगा कि ट्रंप जैसे नेताओं से निपटना है, तो राजनयिक नहीं, बिज़नेस एनालिस्ट बनना होगा।