
बिहार में चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (SIR) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गहमागहमी बढ़ गई है। चुनाव आयोग के इस कदम पर कई विपक्षी दलों ने सवाल उठाए हैं और सुप्रीम कोर्ट ने भी अब तीन अहम मुद्दों पर आयोग से सीधा जवाब मांगा है।
सावन में शिवलिंग पर भूलकर भी न चढ़ाएं ये 6 चीज़ें, पूजा हो सकती है निष्फल
आधार कार्ड और नागरिकता का कनेक्शन? सुप्रीम कोर्ट ने उठाए सवाल
चुनाव आयोग ने आधार कार्ड को दस्तावेज़ के तौर पर न मानने पर कहा कि “यह नागरिकता का प्रमाण नहीं है”। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, “फिर आप इस प्रक्रिया में नागरिकता का सवाल क्यों उठा रहे हैं? यह तो गृह मंत्रालय का अधिकार क्षेत्र है।”
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर नागरिकता की जांच करनी थी तो इसे पहले करना चाहिए था, अब बहुत देर हो चुकी है।
टाइमिंग पर ऐतराज़: “प्रक्रिया नहीं, समय गलत है”
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने चुनाव आयोग से कहा कि “हम पुनरीक्षण प्रक्रिया से नहीं, इसकी टाइमिंग से परेशान हैं। आप इसे नवंबर में होने वाले चुनाव से क्यों जोड़ रहे हैं?”
सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि चुनाव से ठीक पहले गहन पुनरीक्षण करने से मतदाताओं के अधिकार प्रभावित हो सकते हैं।
आयोग की सफाई: हम किसी को बाहर नहीं करेंगे बिना सुनवाई के
चुनाव आयोग के वकील ने भरोसा दिलाया कि “किसी को भी मतदाता सूची से बाहर करने से पहले उचित सुनवाई दी जाएगी।”
साथ ही कहा कि आयोग संविधान के तहत ही काम कर रहा है।
सुप्रीम कोर्ट के 3 बड़े सवाल
सर्वोच्च अदालत ने आयोग से पूछा:
-
यह प्रक्रिया चुनाव से पहले क्यों की जा रही है?
-
क्या नागरिकता की जांच इस प्रक्रिया का हिस्सा है?
-
क्या आधार कार्ड को अस्वीकार करना उचित है?
क्या धारा 21(3) आयोग को यह अधिकार देती है?
सुनवाई के दौरान यह भी चर्चा हुई कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 21(3) आयोग को गहन पुनरीक्षण का अधिकार देती है।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, “अगर ये अधिकार पहले से था, तो विधायिका ने तीन उपधाराएं अलग-अलग क्यों बनाईं?”
विपक्ष एकजुट: 10 से ज्यादा दलों की याचिकाएं दाखिल
कई राजनीतिक दलों ने मिलकर इस प्रक्रिया के खिलाफ याचिकाएं दाखिल की हैं जिनमें शामिल हैं:
कांग्रेस, RJD, TMC, NCP (शरद पवार), SFI, CPI, CPI(ML), झामुमो, सपा और शिवसेना (उबाठा)।
इन नेताओं में मनोज झा, महुआ मोइत्रा, केसी वेणुगोपाल, सुप्रिया सुले, अरविंद सावंत, दीपांकर भट्टाचार्य और अन्य शामिल हैं।
“गलियों में नहीं, हाईवे पर चलें”: सुप्रीम कोर्ट की सलाह
जस्टिस धूलिया ने कहा,“इस बहस को गैरज़रूरी गलियों में ले जाने की बजाय सीधी राह पर चलें।”
मुख्य मुद्दा है — क्या इस प्रक्रिया से मतदाता अधिकारों पर असर पड़ रहा है या नहीं?
सिसोदिया का पीए बनकर नेता जी से ऐंठे पैसे! ‘डिजिटल स्वैग’ देख चकरा गई पुलिस