
भगवान शिव ने संसार को बचाने के लिए हलाहल पिया। मतलब साफ है – खुद को दुख दो ताकि दूसरों को सुख मिले।
अब भक्तगण सोचते हैं – “वाह! भोले बाबा ने ज़हर पिया, हम भी पी लेते हैं… लेकिन अपना वाला!”
भाई, ये कौन-सी श्रद्धा है जिसमें गांजा-सुलफा-भांग के बिना भक्ति नहीं होती?
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भक्ति के नाम पर ‘भांग’ का ब्रांड प्रमोशन
सावन का महीना आते ही कुछ लोग मंदिर नहीं, “नशा केंद्र” जैसे माहौल बनवा देते हैं। कहीं डमरू के साथ ‘डोज’, तो कहीं जल चढ़ाने से पहले ‘जॉइंट’ चढ़ता है। भोले बाबा का संदेश था – “ब्रह्मचर्य, ध्यान, योग और संयम।”
भक्त कहता है – “ध्यान के बाद थोड़ा धुआं भी ज़रूरी है, बाबा की कृपा आएगी!”
भोलेनाथ बोले – ‘भांग-धतूरा मुझे दो, खुद स्वस्थ रहो!’
शिवपुराण और स्कंदपुराण में दर्ज है कि भांग-धतूरा शिव को प्रिय है, लेकिन कहीं ये नहीं लिखा कि खुद खा के मंदिर जाओ! अगर भोलेनाथ सामने आ जाएं तो शायद पूछें – “बेटा! मेरी पूजा कर रहा है या अपनी इंद्रियों की?”
सच्ची भक्ति = साफ मन + साफ तन
भक्ति का मतलब होता है शुद्धता – विचारों में भी और शरीर में भी। आजकल कुछ लोग भक्ति को पार्टी बना देते हैं – “भोलेनाथ की याद में महफिल!” किराए के डीजे, हाथ में डमरू और मन में सिर्फ नशा – ये श्रद्धा नहीं, तमाशा है।
भोलेनाथ के भक्त या ‘भोलेनाथ के नाम पर ब्रांड एंबेसडर’?
सावन में कुछ लोग ऐसे चिल्लाते हैं – “बम बम भोले!” जैसे बाबा शिव नहीं, खुद बाबा रामदेव हों और भांग उनका नया प्रोडक्ट।
किसी ने सही कहा – “जब नशा भक्ति पर भारी पड़ जाए, तो समझिए भक्त खुद नशे में हैं, भक्ति नहीं!”
सावन में सच्चे बनो, भक्त नहीं भांगेड़ी!
भोलेनाथ का रास्ता नशे से नहीं, त्याग और प्रेम से गुजरता है। सावन में भगवान को जल चढ़ाइए, मन में सत्य लाइए और शरीर को स्वस्थ रखिए। क्योंकि भोले बाबा कहें – “भक्त हो के बहको मत, जो मैं सहा वो तुम न सह पाओगे!”
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