कुमकुम आदर्श नहीं रहीं – कथक की एक उजली ज्योति बुझ गई

साक्षी चतुर्वेदी
साक्षी चतुर्वेदी

लखनऊ घराना, कथक की सबसे भावप्रवण शैलियों में से एक माना जाता है। इसकी खूबी होती है—नज़ाकत, नज़रिया और नज़ारा
कुमकुम आदर्श ने इस शैली को न केवल सीखा, बल्कि उसके भाव, अभिनय और लयकारी को दुनियाभर में फैलाया।

गुरु-शिष्य परंपरा का आदर्श चेहरा

कुमकुम आदर्श ने कथक को सिर्फ सीखा नहीं, बल्कि गुरु-शिष्य परंपरा के ज़रिए 300 से अधिक विद्यार्थियों को प्रशिक्षित भी किया। वे गुरु लच्छू महाराज की शिष्या थीं, जो लखनऊ घराने के सबसे प्रतिष्ठित नामों में गिने जाते हैं।

देश-विदेश में प्रस्तुति, कोरियोग्राफी में महारत

उन्होंने भारत और विदेशों में एकल नृत्य और कथक बैले प्रस्तुत किए, जो नृत्य प्रेमियों के दिलों में आज भी बसे हुए हैं। नृत्य निर्देशन और कोरियोग्राफी में भी उन्होंने नये प्रयोग किए और कथक को एक आधुनिक स्पर्श दिया, परंपरा को बनाए रखते हुए

सम्मान जो कहानियाँ सुनाते हैं

  • उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार

  • यश भारती सम्मान

इन पुरस्कारों ने उनके नृत्य, समर्पण और योगदान को मान्यता दी, लेकिन उनका असली पुरस्कार उनके छात्रों और दर्शकों की तालियाँ थीं।

एक युग का अंत – लेकिन कला अमर रहेगी

कुमकुम आदर्श का जाना केवल एक व्यक्ति का जाना नहीं है, बल्कि एक कला की जीवंत अभिव्यक्ति का मौन हो जाना है।
कथक मंच अब थोड़ी देर के लिए शांत है, लेकिन उनकी ताल, भाव और घुंघरुओं की गूंज सदैव जीवित रहेगी।

अंतिम शब्द

कला कभी नहीं मरती, वह बस एक अमर कथा बन जाती है। कुमकुम आदर्श ने कथक को जिया, सिखाया और सजाया — और अब वो उसी लय में कहीं खो गईं… लेकिन हमेशा के लिए दिलों में बसी रहेंगी

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