प्यास पे करबला रोया: अली असग़र अ.स. पर एक नौहा जो रूह तक हिला दे

सैफी हुसैन
सैफी हुसैन

कर्बला की दास्तान में अगर कोई लम्हा सबसे ज्यादा रूह को झकझोरता है, तो वो है अली असग़र अ.स. की शहादत। महज़ छह महीने की उम्र, दूध के लिए तड़पता बच्चा, और पिता इमाम हुसैन अ.स. की गोद में तीर की ज़ुबान से मिला जवाब — यह नज़ारा न केवल इतिहास बल्कि इंसानियत के सीने पर एक ऐसा ज़ख्म है, जो कभी नहीं भरता।

ये नौहा सिर्फ़ एक मातमी नज़्म नहीं, बल्कि उस मासूम चीख़ का साज है जिसे न कोई ज़ुबां मिली, न ज़मीर ने जवाब दिया। ये तरन्नुम अली असग़र अ.स. की प्यास को सिर्फ़ बयान नहीं करता, बल्कि हर संवेदनशील दिल को रोने पर मजबूर कर देता है।

“तेरी प्यास को सारा ज़माना रोया है…”

करबला की रेत पर, सबसे मासूम लहू जब बहा, तब आसमान भी थर्रा उठा।

बंद 1 – सब्र की मिसाल, प्यास की चीख़

तेरी प्यास को सारा ज़माना रोया है,
असग़र! तुझ पे खुद आसमाँ भी रोया है।
छह माह का था तू, मगर सब्र की मिसाल,
तेरे तीर को देखे, तो जिगर रोया है।

बंद 2 – पिता की गुहार, ज़ालिम का जवाब

बाबा ने उठाया तुझे ख़ैमों से बाहर,
सूखी थी ज़बां, आंखें थीं बे-करार।
कहा हुसैन ने, “बस पानी दे दो,”
ज़ालिम ने चलाया, जवाब में ख़ंजर।

बंद 3 – गोदी में मौत का मंज़र

गोदी में तेरी मौत का मंज़र देखा,
हुसैन के सीने ने एक ज़ख़्म गहरा सहा।
तेरी लोरी बनी अब तीर की आवाज़,
कर्बला ने देखा जो कभी न देखा।

बंद 4 – माँ रबाब की चीख़ और ख़ामोशी

रूख़्सार पे तेरा लहू ही लहू था,
माँ रबाब की गोद अब सूनी हुई थी।
असग़र! तुझे किस क़सूर की सज़ा मिली,
दुनिया की ये सबसे बड़ी ख़ता लगी थी।

मकताई – रेत की गवाही, मातम की लोरी

लोरी की जगह मातम ने ली है,
असग़र की चुप्पी ने रूहें हिला दी हैं।
हुसैन अब कहें किससे, दर्द-ए-दिल अपना,
कब्र भी नहीं — बस रेत की गवाही है।

हर बंद के बाद:

“या असग़र… या असग़र… या असग़र अ.स…”

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