अनुप्रिया के बागी हुए बेफ़िक्री से मंत्री! अब योगी से पद वापसी की सिफारिश

गौरव त्रिपाठी
गौरव त्रिपाठी

जब अनुप्रिया पटेल अपने ‘अपना दल (एस)’ को लेकर दिल्ली-लखनऊ के बीच गठबंधन धर्म निभा रही थीं, उसी वक्त उनके पुराने सिपाही तलवारें निकाल कर मोर्चा खोल बैठे।
ब्रजेंद्र सिंह पटेल और बौद्ध अरविंद पटेल, जिन्हें कभी पार्टी ने बड़े पदों पर बिठाया था, अब खुद को “असली अपना दल” बताकर बैनर-बजाएं लेकर मैदान में उतर आए।

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चिट्ठी बम: जब सीएम योगी को हुई शिकायत

पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष आर.पी. गौतम ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक खास चिट्ठी लिखी, जिसमें कहा गया,
“सर! ये दोनों नेता तो पार्टी से तीन साल पहले ही निष्कासित हो चुके हैं!”
बात सिर्फ पार्टी विरोधी गतिविधियों की नहीं, बात “गठबंधन धर्म की मर्यादा” की भी है, जो अब एक सियासी ब्रह्मास्त्र की तरह इस्तेमाल हो रही है।

मंत्री पद में मलाई, बगावत में मलाई कुल्फी?

पूर्वांचल विकास बोर्ड के सदस्य बौद्ध अरविंद पटेल और अपर शासकीय अधिवक्ता मोनिका आर्या का नाम सीधे पत्र में घसीट लिया गया।
“सरकार ने हमारी मर्ज़ी के बिना ही इन्हें दोबारा पोस्टिंग दे दी, अब गठबंधन का नमक खाकर हम चुप कैसे रहें?” – ऐसा भाव गौतम के पत्र से टपक रहा था।

असली अपना दल: कौन असली? कौन नकली?

अपना मोर्चा’ नाम से नया संगठन खड़ा कर बागी नेताओं ने एलान किया – “हम ही असली अपना दल हैं!” अब जनता तय करे, कौन असली दाल में नमक है और कौन पकोड़े के साथ परोसा गया प्याज़।

योगी जी का धर्मसंकट: गठबंधन या ग़ुस्सा?

अब गेंद सीएम योगी आदित्यनाथ के पाले में है। अनुप्रिया चाहती हैं कि जो ‘अपना’ नहीं रहा, उससे ‘अपना कोटा’ भी वापस लिया जाए।
लेकिन सत्ता की बिसात पर गोटियां इतनी आसानी से नहीं हटतीं।

सियासत में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं, सिर्फ़ पद स्थायी चाहिए

यह पूरा मामला हमें याद दिलाता है कि राजनीति में निष्ठा की शपथ कभी-कभी सिर्फ शपथ ग्रहण समारोह तक सीमित रहती है। बागी नेता हों या पार्टी प्रमुख, कुर्सी दोनों को प्यारी है — बस फर्क इतना है कि एक उसे बचाना चाहता है, दूसरा हथियाना।

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